Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अठारहवाँ शतक : उद्देशक-७
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[उ.] हाँ, है। [प्र.] आयुष्मन् ! क्या तुम अरणि की लकड़ी में रही हुई उस अग्नि का रूप देखते हो? [उ.] यह बात तो शक्य नहीं है। [प्र.] आयुष्मन् ! समुद्र के उस पार रूपी पदार्थ हैं न ? [उ.] हाँ, हैं। [प्र.] आयुष्मन् ! क्या तुम समुद्र के उस पार रहे हुए पदार्थों के रूप को देखते हो ? [उ.] यह देखना शक्य नहीं है। [प्र.] आयुष्मन् ! क्या देवलोकों में रूपी पदार्थ हैं ? [उ.] हाँ, हैं। [प्र.] आयुष्मन् ! क्या तुम देवलोकगत पदार्थों के रूपों को देखते हो ? [उ.] यह बात (देवलोकगत पदार्थों का रूप देखना) शक्य नहीं है।
(मद्रुक ने कहा-) इसी तरह, हे आयुष्मन् ! यदि मैं, तुम, या अन्य कोई भी छद्मस्थ मनुष्य, जिन पदार्थों को नहीं जानता या नहीं देखता, उन सब का अस्तित्व नहीं होता, ऐसा माना जाए तो तुम्हारी मान्यतानुसार लोक में बहुत-से पदार्थों का अस्तित्व ही नहीं रहेगा, (अर्थात्-उन पदार्थों का अभाव हो जाएगा); यों कहकर मद्रुक श्रमणोपासक ने उन अन्यतीर्थिकों को प्रतिहत (हतप्रभ) कर दिया। उन्हें निरुत्तर करके वह गुणशील उद्यान में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी जहाँ विराजमान थे, वहाँ उनके निकट आया और पांच प्रकार के अभिगम से श्रमण भगवान् महावीर की सेवा में पहुँच कर यावत् पर्युपासना करने लगा।
विवेचन—मद्रुक श्रावक ने अन्यतीर्थिकों को निरुत्तर किया-मद्रुक के समक्ष उन अन्यतीर्थिकों ने यह शंका प्रस्तुत की कि ज्ञातपुत्र-प्ररूपित पंचास्तिकाय को सचेतन-अचेतन या रूपी-अरूपी कैसे माना जाए, जबकि वह अदृश्यमान होने के कारण अस्तित्वहीन हैं ? क्या तुम धर्मास्तिकायादि को जानते-देखते हो? मद्रुक ने कहा—किसी भी पदार्थ को हम उसके कार्य से जान-देख पाते हैं, जो पदार्थ कुछ भी कार्य न करे, निष्क्रिय रहे, उसे हम नहीं जान सकते। इतने पर भी अन्यतीर्थिकों ने आक्षेप करते हुए कहा- 'तुम भला कैसे श्रमणोपासक हो, जो धर्मास्तिकायादि को प्रत्यक्ष जानते-देखते नहीं हो, फिर भी मानते हो ?'
इसका मद्रुक ने अकाट्य युक्तियों के साथ उत्तर दिया-अच्छा, आप यह बताइये कि हवा चलती है, परन्तु क्या आप हवा का रूप देखते हैं ?, इसी प्रकार गन्धगत पुद्गल, अरणि में रही हुई अग्नि, समुद्र के उस पार रहे हुए पदार्थ, देवलोक के पदार्थों आदि को क्या आप प्रत्यक्ष जानते-देखते हैं ? नहीं जानते-देखते, फिर भी
आप उन पदार्थों को मानते हैं। यदि आपके मतानुसार जिन चीजों को हम, आप या अन्य छद्मस्थ मनुष्य प्रत्यक्ष नहीं जानते-देखते उन्हें न मानें, तब तो संसार के बहुत-से पदार्थों का अभाव हो जाएगा। अतः छद्मस्थ के धर्मास्तिकायादि को प्रत्यक्ष नहीं जानने-देखने मात्र से उनका अभाव सिद्ध नहीं होता, अपितु धर्मास्तिकायादि के