Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अठारहवां शतक : उद्देशक-७
७२३ प्रणिधान : तीन प्रकार तथा नैरयिकादि में प्रणिधान की प्ररूपणा
१२. कतिविधे णं भंते ! पणिहाणे पन्नत्ते ? गोयमा ! तिविहे पणिहाणे पन्नत्ते, तं जहा—मणपणिहाणे वइपणिहाणे कायपणिहाणे। [१२ प्र.] भगवन् ! प्रणिधान कितने प्रकार का कहा गया है ?
[१२ उ.] गौतम! प्रणिधान तीन प्रकार का कहा गया है, यथा—(१) मनः प्रणिधान, (२) वचनप्रणिधान और (३) कायप्रणिधान।
१३. नेरतियाणं भंते ! कतिविहे पणिहाणे पन्नत्ते ? एवं चेव। [१३ प्र.] भगवन् ! नैरयिकों के कितने प्रणिधान कहे गए हैं ? [१३ उ.] गौतम! इसी प्रकार (पूर्ववत्) (तीनों प्रणिधान इनमें होते हैं।) १४. एवं जाव थणियकुमाराणं। [१४] इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक जानना चाहिए। १५. पुढविकाइयाणं. पुच्छा गोयमा ! एगे कायपणिहाणे पन्नत्ते। [१५ प्र.] भंते ! पृथ्वीकायिक जीवों के प्रणिधान के विषय में प्रश्न ? [१५ उ.] गौतम ! इनमें एकमात्र कायप्रणिधान ही होता है। १६. एवं जाव वणस्सतिकाइयाणं। [१६] इसी प्रकार वनस्पतिकायिकों तक जानना चाहिए। १७. बेइंदियाणं. पुच्छा। गोयमा ! दुविहे पणिहाणे पन्नत्ते, तं जहा—वइपणिहाणे य कायपणिहाणे य। [१७ प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रियजीवों के विषय में प्रश्न ? [१७ उ.] गौतम! उनमें दो प्रकार का प्रणिधान होता है, यथा—वचनप्रणिधान और कायप्रणिधान। १८. एवं जाव चउरिदियाणं। [१८] इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय जीवों तक कहना चाहिए। १९. सेसाणं तिविहे वि जाव वेमाणियाणं। [१९] शेष सभी जीवों के वैमानिकों तक के तीनों प्रकार के प्रणिधान होते हैं।