Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र की अपेक्षा कदाचित् कृतयुग्म यावत् कदाचित कल्योज रूप हैं।
८. बेइंदिया णं. पुच्छा।
गोयमा ! जहन्नपए कडजुम्मा, उक्कोसपए दावरजुम्मा, अजहन्नमणुक्कोसपए सिय कडजुम्मा जाव सिय कलियोगा।
[८ प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रियजीवों के विषय में भी इसी प्रकार का प्रश्न है।
[८ उ.] गौतम! (द्वीन्द्रियजीव) जघन्यपद में कृतयुग्म हैं और उत्कृष्टपद में द्वापरयुग्म हैं, किन्तु अजघन्योत्कृष्ट पद में कदाचित् कृतयुग्म, यावत् कदाचित् कल्योज हैं।
९. एवं जाव चतुरिंदिया। [९] इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रिय पर्यन्त कहना चाहिए। १०. सेसा एगिदिया जहा बेंदिया। [१०] शेष एकेन्द्रियों की वक्तव्यता, द्वीन्द्रिय की वक्तव्यता के समान समझना चाहिए। ११. पंचिंदियतिरिक्खजोणिया जाव वेमाणिया जहा नेरतिया। [११] पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से लेकर वैमानिकों तक का कथन नैरयिकों के समान (जानना चाहिए।) १२. सिद्धा जहा वणस्सतिकाइया। [१२] सिद्धों का कथन वनस्पतिकायिकों के समान जानना चाहिए।
१३. इत्थीओ णं भंते ! किं कडजुम्माओ० पुच्छा। गोयमा ! जहन्नपदे कडजुम्माओ, उक्कोसपए कडजुम्माओ, अजहन्नमणुक्कोसपए सिय कडजुम्माओ जाव सिय कलियोगाओ।
[१३ प्र] भगवन् ! क्या स्त्रियाँ कृतयुग्म हैं? इत्यादि प्रश्न।
[१३ उ.] गौतम! वे जघन्यपद में कृतयुग्म हैं और उत्कृष्टपद में भी कृतयुग्म हैं, किन्तु अजघन्योत्कृष्टपद में कदाचित् कृतयुग्म हैं और यावत् कदाचित् कल्योज हैं।
१४. एवं असुरकुमारित्थीओ वि जाव थणियकुमारित्थीओ।
[१४] असुरकुमारों की स्त्रियों (देवियों) से लेकर स्तनितकुमार-स्त्रियों तक इसी प्रकार (पूर्ववत्) (समझना चाहिए।)
१५. एवं तिरिक्खजोणित्थीओ। [१५] तिर्यञ्चयोनिक स्त्रियों का कथन भी इसी प्रकार कहना चाहिए। १६. एवं मणुस्सित्थीओ।