Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सत्तमो उद्देसओ : 'पुढवी'
सप्तम उद्देशक : पृथ्वीकायिक सौधर्मकल्पादि में मरणसमुद्घात द्वारा सप्तनरकों में उत्पन्न होने योग्य पृथ्वीकायिक जीव की उत्पत्ति और पुद्गलग्रहण में पहले क्या, पीछे क्या ?
१. पुढविकाइए णं भंते ! सोहम्मे कप्पे समोहए, समोहण्णित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए से णं भंते! किं पुट्विं?
सेसं तं चेव। जहा रयणप्पभापुढविकाइओ सव्वकप्पेसु जाव ईसिपब्भाराए ताव उववातिओ एवं सोहम्मपुढविकाइओ वि सत्तसु वि पुढवीसु उववातेयव्वो जाव अहेसत्तमाए। एवं जहा सोहम्म पुढविकाइओ सव्वपुढवीसु उववातिओ एवं जाव ईसिपब्भारापुढविकाइयो सव्वपुढवीसु उववातेयव्वो जाव अहेसत्तमाए। सेवं भंते ! सेवं भंते। ।
॥ सत्तरसमे सए : सत्तमो उद्देसओ समत्तो॥१७-७॥ [१ प्र.] भगवन् ! जो पृथ्वीकायिक जीव, सौधर्मकल्प में मरण-समुद्घात करके इस रत्नप्रभापृथ्वी में पृथ्वीकायिक-रूप से उत्पन्न होने योग्य हैं, वे पहले उत्पन्न होते हैं और पीछे आहार (पुद्गल) ग्रहण करते हैं अथवा पहले आहार (पुद्गल) ग्रहण करते हैं और पीछे उत्पन्न होते हैं ?
[१ उ.] गौतम! जिस प्रकार रत्नप्रभापृथ्वी के पृथ्वीकायिक जीवों का सभी कल्पों में यावत् ईषत्प्रारभारा पृथ्वी में उत्पाद कहा गया, उसी प्रकार सौधर्मकल्प के पृथ्वीकायिक जीवों का सातों नरक-पृथ्वियों में यावत् अध:सप्तमपृथ्वी तक उत्पाद जानना चाहिए।
इसी प्रकार सौधर्मकल्प के पृथ्वीकायिक जीवों के समान सभी कल्पों में, यावत् ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी के पृथ्वीकायिक जीवों का सभी पृथ्वियों में अध:सप्तमपृथ्वी तक उत्पाद जानना चाहिए।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है; यों कहकर (गौतमस्वामी) यावत् विचरते हैं।
विवेचन—प्रस्तुत सप्तम उद्देशक में सौधर्मकल्प आदि में मरण-समुद्घात करके रत्नप्रभादि नरकों में उत्पन्न होने योग्य पृथ्वीकायिक जीव पहले उत्पन्न होता है फिर आहार-पुद्गल ग्रहण करता है अथवा पहले आहार ग्रहण करता है और फिर उत्पन्न होता है, इसका समाधान पूर्ववत् प्रस्तुत किया गया है। ॥ सत्तरहवाँ शतक : सप्तम उद्देशक समाप्त॥
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