Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अठारहवाँ शतक : प्राथमिक
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है। तत्पश्चात् यह बताया गया है कि जो प्राणी जिस गति-योनि में उत्पन्न होने वाला है, वह उसके आयुष्य का उदयाभिमुख कर लेता है, वेदन तो वह उसी गति-योनि का करता है, जहाँ वह अभी है। उसके बाद एक ही आवास में उत्पन्न दो देवों में से एक स्वेच्छानुकूल विकुर्वणा करता और दूसरा स्वेच्छाप्रतिकूल, इसका कारण बताया गया। छठे उद्देशक 'गुल' में—गुड़ आदि प्रत्येक वस्तु के वर्णादि का निश्चय और व्यवहार दोनों दृष्टियों से निरूपण किया गया है । तत्पश्चात् परमाणु से लेकर सूक्ष्म अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक में पाए जाने वाले वर्ण गन्धादि विषयक विकल्पों की प्ररूपणा है। सप्तम उद्देशक केवली' में सर्वप्रथम अन्यतीर्थिकों की केवली-सम्बन्धी विपरीत मान्यता का निराकरण किया गया है। तत्पश्चात् उपधि और परिग्रह के प्रकार तथा किस जीव में कितनी उपधि या परिग्रह पाया जाता है, इसका निरूपण है। फिर नैरयिकों से वैमानिकों तक में प्रणिधानत्रय की प्ररूपणा है। उसके पश्चात् मद्रुक श्रावक द्वारा अन्यतीर्थिकों के पंचास्तिकाय विषयक समाधान तथा श्रावक व्रत ग्रहण करने का प्रतिपादन है। फिर वैक्रियकृत शरीर का सम्बन्ध एक जीव से है या अनेक जीवों से, तथा कोई उन शरीरों के अन्तराल के छेदन-भेदनादि द्वारा पीडा पहुँचा सकता है? देवासुरसंग्राम में दोनों किन शस्त्रों का प्रयोग करते हैं ? महर्द्धिक देव लवणसमुद्र धातकीखण्ड आदि के चारों ओर चक्कर लगाकर वापिस शीघ्र आ सकते हैं ? इत्यादि प्रश्न हैं। उसके बाद देवों के कर्मांशों को क्षय का कालमान दिया गया है। आठवें उद्देशक ‘अनगार' में भावितात्मा अनगार को साम्परायिक क्रिया क्यों नहीं लगती, इसका समाधान है । फिर अन्यतीर्थिकों के इस आक्षेप का—'तुम असंयत, अविरत यावत् एकान्त बाल हो', का गौतम स्वामी द्वारा निराकरण किया गया है। तत्पश्चात् छद्मस्थ मनुष्य द्वारा तथा अवधिज्ञानी, परम अवधिज्ञानी एवं केवलज्ञामी द्वारा परमाणु से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक को जानने-देखने की शक्ति का वर्णन किया गया है। नौवें उद्देशक 'भविए' में नैरयिक से लेकर वैमानिक तक के भव्यद्रव्यत्व का निरूपण किया गया है। भव्यद्रव्य नैरयिकादि की स्थिति का कालमान भी बताया गया है। दसवें उद्देशक 'सोमिल' में सर्वप्रथम भावितात्मा अनगार की वैक्रियलब्धि के सामर्थ्य सम्बन्धी १० प्रश्न हैं । तत्पश्चात् परमाणु पुद्गलादि क्या वायुकाय से स्पृष्ट हैं या वायुकाय परमाणु पुद्गलादि से स्पृष्ट है? क्या नरकादि के नीचे वर्णादि अन्योन्यबद्ध आदि हैं? इसके पश्चात् सोमिल द्वारा यात्रा, यापनीय अव्यावाध और प्रासुकविहार सम्बन्धी पूछे गए प्रश्नों तथा सरिसव, मास, कुलत्था के भक्ष्याभक्ष्य सम्बन्धी एवं एक-अनेकादि प्रश्नों का समाधान है। तत्पश्चात् सोमिल के प्रबुद्ध होने तथा श्रावकव्रत अंगीकार करने का वर्णन है।
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