Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[६ उ.] गौतम! ( अनेक जीव, जीवत्व की अपेक्षा से) प्रथम नहीं, अप्रथम हैं । ७. एवं जाव वेमाणिया ।
[७] इस प्रकार नैरयिक ( से लेकर) अनेक वैमानिकों तक ( जानना चाहिए)। ८. सिद्धा णं० पुच्छा ।
गोयमा ! पढमा, नो अपढमा ।
[८ प्र.] भगवन् ! सभी सिद्ध जीव, सिद्धत्व की अपेक्षा से प्रथम हैं या अप्रथम हैं ?
[८ उ.] गौतम! वे सिद्धत्व की अपेक्षा से प्रथम हैं, अप्रथम नहीं हैं ।
विवेचन - (१) जीवद्वार — प्रस्तुत ७ सूत्रों (सू.२ से ८ तक) में जीवद्वार में एक जीव, चौवीस दण्डकवर्ती जीव, अनेक जीव, एक सिद्ध जीव और अनेक सिद्ध जीवों के विषय में प्रथम - अप्रथम की चर्चा की गई है।
प्रथमत्व - अप्रथमत्व का स्पष्टीकरण प्रथमत्व और अप्रथमत्व की प्रतिपादक गाथा इस प्रकार है"जो जेण पत्तपुव्वो भावो, सो तेण अपढमो हो ।
सेसेसु होइ पढमो, अपत्तपुव्वेसु
भावेसु ॥”
अर्थात् — जिस जीव ने जो भाव पहले भी प्राप्त किया है, उसकी अपेक्षा से वह भाव 'अप्रथम' है। जैसे जीव को जीवत्व (जीवपन) अनादिकाल से प्राप्त होने के कारण जीवत्व की अपेक्षा से जीव अप्रथम है, प्रथम नहीं, किन्तु जो भाव जीव को पहले कभी प्राप्त नहीं हुआ है उसे प्राप्त करना, उस भाव की अपेक्षा से 'प्रथम' है । जैसे— सिद्धत्व अनेक या एक सिद्ध की अपेक्षा से प्रथम है, क्योंकि वह (सिद्धभाव) जीव को पहले कदापि प्राप्त नहीं हुआ था । द्वितीय प्रश्न का आशय यह है कि जीवत्व पहले नहीं था, और प्रथम यानी पहले-पहल प्राप्त हुआ है, अथवा जीवत्व अप्रथम है, अर्थात् — अनादिकाल से अवस्थित है ?"
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
जीव, चौवीस दण्डक और सिद्धों में आहारकत्व - अनाहारकत्व की अपेक्षा से प्रथमत्वअप्रथमत्व का निरूपण
१. आहारएणं भंते! जीवे आहारभावेणं किं पढमे, अपढमे ?
गोमा ! नो पढमे, अपढमे ।
[१ प्र.] भगवन् ! आहारकजीव, आहारकभाव से प्रथम है अथवा अप्रथम है ?
[१ उ.] गौतम ! वह आहारकभाव की अपेक्षा से प्रथम नहीं, अप्रथम है ।
१०. एवं जाव वेमाणिए ।
१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ७३३