Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अठारहवाँ शतक : उद्देशक - ३
[ २ ] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति जीवाणं पावे कम्मे जे य कडे जाव जे य कज्जिस्सति अत्थि याइं तस्स णाणत्ते ?
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मागंदियपुत्त ! से जहानामए – केयि पुरिसे धणुं परामुसति, धणुं प० २ उसु परामुसति, उसुं प० २ ठाणं ठाति, ठा० २ आयतकण्णायतं उसुं करेति, आ० क० २ उड्ढं वेहासं उव्विहइ । से नूणं मागंदियपुत्ता! तस्स उसुस्स उड्ढं वेहासं उव्वीढस्स समाणस्स एयति वि णाणत्तं, जाव तं तं भावं परिणमति वि णाणत्तं ?
हंता, भगवं ! एयति वि णाणत्तं, जाव परिणमति वि णाणत्तं ।
से तेणट्ठेणं मागंदियपुत्ता ! एवं वुच्चति जाव तं तं भावं परिणमति वि णाणत्तं ।
[ २१-२ प्र.] भगवन् ! आप ऐसा किस कारण से कहते हैं कि जीव ने जो पापकर्म किया है, यावत् करेगा, उनके परस्पर कुछ भेद हैं ?
[२१ - २ उ.] माकन्दिकपुत्र ! जैसे कोई पुरुष धनुष को (हाथ में ) ग्रहण करे, फिर वह बाण को ग्रहण करे और अमुक प्रकार की स्थिति (आकृति) में खड़ा रहे, तत्पश्चात् बाण को कान तक खींचे और अन्त में, उस बाण को आकाश में ऊँचा फैंके, तो हे माकन्दिकपुत्र ! आकाश में ऊँचे फैंके हुए उस बाण के कम्पन में भेद (नानात्व) है, यावत् — वह उस उस रूप में परिणमन करता है। उसमें भेद है न ? (उत्तर) हाँ भगवन् ! उसके कम्पन में, यावत् उसके उस उस रूप के परिणाम में भी भेद है । (भगवान् ने कहा-) हे माकन्दिकपुत्र ! इसी कारण ऐसा कहा जाता है कि उस कर्म के उस उस रूपादि - परिणाम में भी भेद ( नानात्व) है।
२२. नेरतियाणं भंते! पावे कम्मे जे य कडे० ?
एवं चेव ।
[ २२ प्र.] भगवन् ! नैरयिकों ने (अतीत में) जो पापकर्म किया है, यावत् (भविष्य में) करेंगे, क्या उनमें परस्पर कुछ भेद है ?
[२२ उ.] (हाँ, माकन्दिकपुत्र ! उनमें परस्पर भेद है।) वह उसी प्रकार ( पूर्ववत् समझना चाहिए।) २३. एवं जाव वेमाणियाणं ।
[२२] इसी प्रकार वैमानिकों तक (जान लेना चाहिए।)
विवेचन—कृत पापकर्म के भूत वर्तमान भविष्यत्कालिक परिणामों में भेद का दृष्टान्तपूर्वक निरूपण - प्रस्तुत तीन सूत्रों ( २१-२२-२३) में जीवों के द्वारा किये गए, किये जा रहे तथा भविष्य में किये जाने वाले पापकर्मों के परिणामों में परस्पर भेद को धनुष-बाण फेंकने के दृष्टान्त द्वारा सिद्ध किया गया है।
स्पष्टीकरण – जैसे किसी पुरुष द्वारा धनुष और बाण के अलग-अलग समय में ग्रहण करने, फिर अमुक स्थिति में खड़े रह कर बाण को कान तक खींचने और तत्पश्चात् उसे ऊपर फेंकने के विभिन्न कम्पनों में,