Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अठारहवाँ शतक : उद्देशक-३
७०१
[२६] इसी प्रकार वैमानिकों तक कहना चाहिए।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है।' यों कह कर माकन्दिकपुत्र यावत् विचरण करते हैं।
विवेचन—आहार रूप से गृहीत पुद्गलों के ग्रहण और त्याग एवं उन पुद्गलों की धारणशक्ति का निरूपण—प्रस्तुत तीन सूत्रों में इन दो तथ्यों का निरूपण किया गया है। ___ आहार रूप से गृहीत पुद्गलों का कितना भाग ग्राह्य और त्याज्य होता है ?—आहार रूप में गृहीत पुद्गलों का असंख्यातवाँ सार भाग ग्रहण किया जाता है और अनन्तवाँ भाग मलमूत्रादिवत् त्याग दिया जाता है।
निर्जरा पुद्गलों का सामर्थ्य—निर्जरा किये हुए पुद्गल अनाधारणरूप होते हैं, अर्थात् वे किसी भी वस्तु को धारण करने में समर्थ नहीं होते हैं।'
कठिन शब्दार्थ—सेयकालंसि—भविष्यत्काल में, अर्थात्-ग्रहण करने के अनन्तर काल में। निज्जरेंति-निर्जरण करते हैं—मूत्रादिवत् त्याग करते हैं। चक्किया—शक्य। आसइत्तए—बैठने में। तुयट्टित्तए-करवट बदलने या सोने में।
॥अठारहवां शतक : तृतीय उद्देशक समाप्त॥
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१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ७४३ २. (क) वही, पत्र ७४३
(ख) भगवती सूत्र भा. ६, (विवेचन—पं. घेवरचन्दजी) पृ. २६९०