Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अठारहवाँ शतक : उद्देशक-१
६७९ सेवं भंते ! सेवं भंते ! ० जाव विहरति।
अट्ठारहसमे सए : पढमो उद्देसओ समत्तो॥१८-१॥ [१०३] यह लक्षण-गाथा (चरम-अचरमस्वरूप प्रतिपादक) है।
[गाथार्थ—] जो जीव, जिस भाव को पुनः प्राप्त करेगा, वह जीव उस भाव की अपेक्षा से 'अचरम' होता है, और जिस जीव का जिस भाव के साथ सर्वथा वियोग हो जाता है, वह जीव उस भाव की अपेक्षा 'चरम' होता है ॥१॥
"हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है'-कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरण करते हैं।
विवेचन—सू. १०३ में चरम और अचरम के लक्षण को स्पष्ट करने वाली गाथा प्रस्तुत की गई है। गाथा का भावार्थ स्पष्ट है। ॥अठारहवां शतक : प्रथम उद्देशक समाप्त॥
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