Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अठारहवाँ शतक : उद्देशक-२
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कार्तिक अनगार द्वारा अध्ययन, तप, संलेखनापूर्वक समाधिमरण एवं सौधर्मेन्द्र के रूप में उत्पत्ति
___ [३-५ ] "तए णं से कत्तिए अणगारे मुणिसुव्वयस्स अरहओ तहारूवाणं थेराणं अंतियं सासाइयमाइयाई चोद्दस पुव्वाइं अहिज्जइ, सा० अ० २ बहूहिं चउत्थछट्टट्ठस० जाव अप्पाणं भावेमाणे बहुपडिपुण्णाई दुवालसवासाइं सामण्णपरियागं पाउणति, ब० पा० २ मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झोसेइ, मा० झो० १ सठिं भत्ताई अणसणाए छेदेति, स. छे. २ आलोइय जाव कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडेंसए विमाणे उववायसभाए देवसयणिजंसि जाव सक्के देविंदत्ताए उववन्ने।"
"तए णं से सक्के देविंदे देवराया अहुणोववन्ने।"
सेसं जहा गंगदत्तस्स ( स. १६ उ. ५ सु. १६) जाव अंतं काहिति, नवरं ठिती दो सागरोवमाइं सेसं तं चेव। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति।
॥अट्ठारसमे सए : बीओ उद्देसो समत्तो॥१८-२॥ [३-५] इसके पश्चात् उस कार्तिक अनगार ने तथारूप स्थविरों के पास सामायिक से लेकर चौदह पूर्वो तक का अध्ययन किया। साथ ही बहुत से चतुर्थ (उपवास), छट्ठ (बेले), अट्ठम (तेले) आदि तपश्चरण से आत्मा को भावित करते हुए पूरे बारह वर्ष तक श्रामण्य-पर्याय का पालन किया। अन्त में, उसने एक मास की संल्लेखना द्वारा अपने शरीर को झूषित (कृश) किया, अनशन से साठ भक्त का छेदन किया और आलोचना प्रतिक्रमण आदि करके आत्मशुद्धि की, यावत् काल के समय कालधर्म को प्राप्त कर वह सौधर्मकल्प देवलोक में, सौधर्मावतंसक विमान में रही हुई उपपात सभा में देवशय्या में यावत् शक्र देवेन्द्र के रूप में उत्पन्न हुआ।
इसी से कहा गया था—'शक्र देवेन्द्र देवराज अभी-अभी उत्पन्न हुआ है।'
शेष वर्णन शतक १६ उ.५ सू. १६ से प्रतिपादित गंगदत्त के वर्णन के समान यावत्—'वह सभी दुःखों का अन्त करेगा,' ( यहाँ तक जानना चाहिए)। विशेष यह है कि उसकी स्थिति दो सागरोपम की है। शेष सब वर्णन गंगदत्त के (वर्णन के) समान है। ___ हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन्! यह इसी प्रकार है; यों कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरण करते
विवेचन—इस परिच्छेद (३-५) में कार्तिक अनगार के अध्ययन, तपश्चरण तथा श्रामण्य-पर्याय के पालन की अवधि एवं अन्त में, एकमासिक संल्लेखना द्वारा अपनी आत्मशुद्धिपूर्वक समाधिमरण का और आगामी (इस) भव में देवेन्द्र शक्र देवराज के रूप में उत्पन्न होने का तथा उसकी स्थिति का संक्षेप में वर्णन है।
गंगदत्त और कार्तिक श्रेष्ठी-हस्तिनापुर में कार्तिक सेठ तो बाद में श्रेष्ठी हुए, उनसे बहुत पहले से