Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अठारहवाँ शतक : उद्देशक - २
नाट्यविधि— नाट्यकला के बत्तीस प्रकारों का विधि-विधानपूर्वक प्रदर्शन ।
गौतम द्वारा शक्रेन्द्र के पूर्वभव से सम्बन्धित प्रश्न, भगवान् द्वारा कार्तिक श्रेष्ठी के रूप में परिचयात्मक उत्तर
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३. [ १ ] 'भंते !' त्ति भगवं गोयमे समणं जाव एवं वदासी— जहा ततियसते ईसाणस्स ( स. ३ उ. १ सू. ३४-३५ ) तहेव कूडागारदिट्ठतो, तहेव पुव्वभवपुच्छा जाव अभिसमन्नागया ? 'गोयमा' ई समणे भगवं महावीरें भगवं गौतमं एवं वदासी - " एवं खलु गोयमा ! "तेणं कालेणं तेण समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे हत्थिणापुरे नामं नगरे होत्था । वण्णओ । सहस्संबवणे उज्जाणे । वण्णओ ।"
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'तत्थ णं हत्थिणापुरे नगरे कत्तिए नामं सेट्ठी परिवसइ अड्ढे जाव अपरिभूए णेगमपढमासणिए, णेगमट्ठसहस्सस्स बहूसु कज्जेसु य कारणेसु य कोडुंबेसु य एवं जहा रायपसेणइज्जे, चित्ते जाव चक्खुभूते, गमसहस्सस्स सयस्स य कुडुंबस्स आहेवच्चं जाव करेमाणे पालेमाणे समणोवासए अभिगयजीवाजीवे जाव विहरति । "
[३-१ प्र ] 'भगवन् !' इस प्रकार ( सम्बोधित कर ) भगवान् गौतम ने, श्रमण भगवान् महावीर से पूछा- जिस प्रकार तृतीय शतक ( के प्रथम उद्देशक के सू. ३४-३५ ) में ईशानेन्द्र के वर्णन में कूटागारशाला के दृष्टान्त के विषय में तथा (उसके) पूर्वभव के सम्बन्ध में प्रश्न किया है, उसी प्रकार यहाँ भी, यावत् 'यह ऋद्धि कैसे सम्प्राप्त हुई', – तक ( प्रश्न का उल्लेख करना चाहिए।)
[३ - १ उ. ] 'गौतम ! ' इस प्रकार सम्बोधन कर श्रमण भगवान् महावीर ने, भगवान् गौतम स्वामी ने इस प्रकार कहा
हे गौतम ! ऐसा है कि उस काल और उस समय इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में हस्तिनापुर नामक नगर था। उसका वर्णन (कहना चाहिए)। वहाँ सहस्राम्रवन नामक उद्यान था । उसका वर्णन (करना चाहिए)।
उस हस्तिनापुर नगर में कार्तिक नाम का एक श्रेष्ठी (सेठ) रहता था, जो धनाढ्य यावत् किसी से पराभव न पाने (नहीं दबने) वाला था । उसे वणिकों में अग्रस्थान प्राप्त था । वह उन एक हजार आठ व्यापारियों (नैगमों— वणिकों) के बहुत से कार्यों में, कारणों में और कौटुम्बिक व्यवहारों में पूछने योग्य था, जिस प्रकार राजप्रश्नीयसूत्र में चित्त सारथि का वर्णन है, उसी प्रकार यहाँ भी, यावत् चक्षुभूत था, यहाँ तक जानना चाहिए।' वह कार्तिक श्रेष्ठी, एक हजार आठ व्यापारियों का आधिपत्य करता हुआ, यावत् पालन करता हुआ रहता था। वह जीव- अजीव आदि तत्त्वों का ज्ञाता यावत् श्रमणोपासक था ।
विवेचन—कार्तिक सेठ का सामान्य परिचय — प्रस्तुत सूत्र में भगवान् ने कार्तिक सेठ का सामान्य
१. देखिए रायप्पसेणइय - सुत्तं (गुर्जरग्रन्थ. ) कण्डिका १४५, पृ. २७७-२७८