Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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एगारसमो उद्देसओ : 'वाऊ'
ग्यारहवाँ उद्देशक : (ऊर्ध्व)-वायुकायिक (वक्तव्यता) सौधर्मकल्प में मरणसमुद्घात करके सप्त नरकादि पृथ्वियों में उत्पन्न होने योग्य वायुकाय की उत्पत्ति एवं आहारग्रहण में प्रथम क्या ?
१. वाउकाइए णं भंते ! सोहम्मे कप्पे समोहए, समोहन्नित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए घणवाए तणुवाए घणवायवलएसु तणुवायवलएसु वाउकाइयत्ताए उववज्जित्ताए से णं भंते ! ०?
सेसं तं चेव। एवं सोहम्मवाउकाइओ सत्तसु वि पुढवीसु उवव:तिओ एवं जाव ईसिपब्भारावाउकाइओ अहेसत्तमाए जाव उववायेयव्यो। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।
॥ सत्तरसमे सए : एकारसमो उद्देसओ समत्तो॥ १७-११॥ [१ प्र.] भगवन् ! जो वायुकायिक जीव, सौधर्मकल्प में समुद्घात करके इस रत्नप्रभापृथ्वी के घनवात, तनुवात, घनवातवलयों और तनुवातवलयों में वायुकायिक रूप में उत्पन्न होने योग्य है............ इत्यादि पूर्ववत्
प्रश्न।
[१ उ.] गौतम! शेष सब पूर्ववत् कहना चाहिए। जिस प्रकार सौधर्मकल्प के वायुकायिक जीवों का उत्पाद सातों नरकपृथ्वियों में कहा, उसी प्रकार ईषत्प्राग्भारापृथ्वी तक के वायुकायिक जीवों का उत्पाद अधःसप्तमपृथ्वी तक जानना चाहिए। भगवन्! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कह कर; (गौतमस्वामी) यावत् विचरते हैं। ॥ सत्तरहवां शतक : ग्यारहवाँ उद्देशक समाप्त॥
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