Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [३ प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्या (से लेकर) यावत् तेजोलेश्या वाले एकेन्द्रिय में कौन किससे अल्प (बहुत, अधिक) यावत् विशेषाधिक हैं?
[३ उ.] गौतम! सबसे थोड़े एकेन्द्रिय जीव तेजोलेश्या वाले हैं, उनसे कापोतलेश्या वाले अनन्तगुणे हैं, उनसे नीललेश्या वाले विशेषाधिक हैं और उनसे कृष्णलेश्या वाले एकेन्द्रिय विशेषाधिक हैं।
४. एएसि णं भंते ! एगिंदियाणं कण्हलेस. इड्डी ? जहेव दीवकुमाराणं ( स. १६ उ. ११ सु..४)। सेवं भंते ! सेवं भंते! ।
॥ सत्तरसमे सए : बारसमो उद्देसओ समत्तो॥१७-१२॥ [४ प्र.] भगवन् ! इन कृष्णलेश्या वालों से लेकर यावत् तेजोलेश्या वाले एकेन्द्रियों (तक) में कौन अल्प ऋद्धि वाला है और कौन महाऋद्धि वाला है?
_ [४ उ.] गौतम! (सोलहवें शतक के ११ वें उद्देशक (सू. ४ में) जिस प्रकार द्वीपकुमारों की ऋद्धि कही गई है, उसी प्रकार यहाँ एकेन्द्रियों में भी कहना चाहिए।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है; यों कह कर (गौतमस्वामी) यावत् विचरते हैं।
विवेचन—प्रस्तुत सूत्र ३-४ में पृथ्वीकायादि एकेन्द्रिय जीवों में लेश्या तथा उक्त लेश्याओं वाले एकेन्द्रियों के अल्पबहुत्व आदि की तथा लेश्या की तथा ऋद्धि की समानता-असमानता का प्रतिपादन अतिदेशपूर्वक किया गया है।
॥ सत्तरहवां शतक : बारहवाँ उद्देशक समाप्त॥
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१. (क) भगवती. श. १६. उ.१ सू. ४ में देखिये
(ख) भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. ५, पृ. २६४१