SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 683
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६५० व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [३ प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्या (से लेकर) यावत् तेजोलेश्या वाले एकेन्द्रिय में कौन किससे अल्प (बहुत, अधिक) यावत् विशेषाधिक हैं? [३ उ.] गौतम! सबसे थोड़े एकेन्द्रिय जीव तेजोलेश्या वाले हैं, उनसे कापोतलेश्या वाले अनन्तगुणे हैं, उनसे नीललेश्या वाले विशेषाधिक हैं और उनसे कृष्णलेश्या वाले एकेन्द्रिय विशेषाधिक हैं। ४. एएसि णं भंते ! एगिंदियाणं कण्हलेस. इड्डी ? जहेव दीवकुमाराणं ( स. १६ उ. ११ सु..४)। सेवं भंते ! सेवं भंते! । ॥ सत्तरसमे सए : बारसमो उद्देसओ समत्तो॥१७-१२॥ [४ प्र.] भगवन् ! इन कृष्णलेश्या वालों से लेकर यावत् तेजोलेश्या वाले एकेन्द्रियों (तक) में कौन अल्प ऋद्धि वाला है और कौन महाऋद्धि वाला है? _ [४ उ.] गौतम! (सोलहवें शतक के ११ वें उद्देशक (सू. ४ में) जिस प्रकार द्वीपकुमारों की ऋद्धि कही गई है, उसी प्रकार यहाँ एकेन्द्रियों में भी कहना चाहिए। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है; यों कह कर (गौतमस्वामी) यावत् विचरते हैं। विवेचन—प्रस्तुत सूत्र ३-४ में पृथ्वीकायादि एकेन्द्रिय जीवों में लेश्या तथा उक्त लेश्याओं वाले एकेन्द्रियों के अल्पबहुत्व आदि की तथा लेश्या की तथा ऋद्धि की समानता-असमानता का प्रतिपादन अतिदेशपूर्वक किया गया है। ॥ सत्तरहवां शतक : बारहवाँ उद्देशक समाप्त॥ ००० १. (क) भगवती. श. १६. उ.१ सू. ४ में देखिये (ख) भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. ५, पृ. २६४१
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy