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बारसमो उद्देसओ : एगिदिय' बारहवाँ उद्देशक : एकेन्द्रिय जीवों के आहारादि की समता-विषमता एकेन्द्रिय जीवों में समाहार आदि सप्त-द्वार-प्ररूपण
१. एगिंदिया णं भंते ! सव्वे समाहारा, सव्वे समसरीरा ?
एवं जहा पढमसए बितियउद्देसए पुढविकाइयाणं वत्तव्वया भणिया (सू. १ उ. २ सु.७) सा चेव एगिंदियाणं इहं भाणियव्वा जाव समाउया समोववन्नगा।
[१ प्र.] भगवन्! क्या सभी एकेन्द्रिय जीव समान आहार वाले हैं, सभी समान शरीर वाले हैं ? इत्यादि पूर्ववत प्रश्न।
[१ उ.] गौतम! प्रथम शतक के द्वितीय उद्देशक (सू. ७) में जिस प्रकार पृथ्वीकायिक जीवों की वक्तव्यता कही है, वही यहाँ एकेन्द्रिय जीवों के विषय में कहनी चाहिए; यावत् वे न तो समान आयुष्य वाले हैं और न ही एक साथ उत्पन्न हुए हैं।
विवेचन—प्रस्तुत सूत्र में प्रथम शतक के द्वितीय उद्देशक (सू, ५-६-७) में उक्त जीवों के आहार, शरीर, उच्छ्वास-नि:श्वास, कर्म, वर्ण, लेश्या, वेदना, क्रिया, आयुष्य एवं साथ उत्पन्न होना इत्यादि १० बातों के विषय में समानता-असमानता का प्रश्न उठा कर प्रथम शतक द्वितीय उद्देशक के अतिदेशपूर्वक समाधान किया गया है।' एकेन्द्रियों में लेश्या की, तथा लेश्या एवं ऋद्धि की अपेक्षा से अल्प-बहुत्व की प्ररूपणा
२. एगिंदियाणं भंते ! कति लेस्साओ पन्नत्ताओ ? गोयमा! चत्तारि लेस्साओ पन्नत्ताओ, तं जहा—कण्हलेस्सा जाव तेउलेस्सा। [२ प्र.] भगवन् ! एकेन्द्रिय जीवों में कितनी लेश्याएँ कही गई हैं ? . [२ उ.] गौतम! चार लेश्याएँ कही गई हैं । यथा—कृष्णलेश्या यावत् तेजोलेश्या। ३. एतेसि णं भंते ! एगिंदियाणं कण्हलेस्साणं जाव विसेसाहिया वा ?
गोयमा ! सव्वत्थोवा एगिंदिया तेउलेस्सा, काउलेस्सा अणंतगुणा, णीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया।
१. भगवती. शतक १, उ. २, सू. ५ से ७ तक में देखिये
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र खण्ड १ (आ. प्र. समिति), पृ. ४४-४६