Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
सत्तरहवां शतक : प्राथमिक
पंचम उद्देशक में में ईशानेन्द्र की सुधर्मासभा का सांगोपांग वर्णन है ।
छठे उद्देशक से लेकर नौवें उद्देशक तक में रत्नप्रभादि नरकपृथ्वियों में मरणसमुद्घात करके सौधर्मकल्प से यावत् ईषत्प्राग्भारापृथ्वी तक में पृथ्वीकायादि चार स्थावरों में उत्पन्न होने योग्य अधोलोकस्थ पृथ्वीकायादि में पहले उत्पन्न होते हैं, पीछे पुद्गल (आहार) ग्रहण करते हैं; अथवा पहले आहार (पुद्गल) ग्रहण करते हैं, पीछे उत्पन्न होते हैं? इसी प्रकार सौधर्मकल्पादि में मरण - समुद्घात करके रत्नप्रभादि सातों नरकपृथ्वियों में उत्पन्न होने योग्य ऊर्ध्वलोकस्थ पृथ्वीकायादि के भी उत्पन्न होने और आहार (पुद्गल) ग्रहण करने की पहले पीछे की चर्चा की गई है।
O
+
६०९
बारहवें उद्देशक में एकेन्द्रियजीवों में आहार, श्वासोच्छ्वास, आयुष्य, शरीर आदि की समानताअसमानता की तथा इनमें पाई जाने वाली लेश्याओं की और लेश्या वालों के अल्पबहुत्व की विचारणा गई है।
तेरहवें से सत्तरहवें उद्देशक में इसी प्रकार क्रमश: नागकुमार, सुवर्णकुमार, विद्युत्कुमार और अग्निकुमार देवों में आहार, श्वासोच्छ्वास, आयुष्य, शरीर आदि की समानता - असमानता की तथा उनमें पाई जाने वाली लेश्याओं की एवं उक्त लेश्या वालों के अल्पबहुत्व की प्ररूपणा की गई है।
O
इस प्रकार सत्तरह उद्देशकों में कुल मिलाकर विभिन्न जीवों से सम्बन्धित अध्यात्मविज्ञान की विशद विचारणा की गई है।
१. वियाहपण्णत्तिसुत्तं भा. २ ( मूलपाठ - टिप्पणयुक्त), पृ. ७७३ से ७९१ तक