Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
आत्मा-पर- तदुभय-प्रयोगनिर्वर्तित अधिकरण — हिंसादि पापकार्यों में स्वयं प्रवृत्ति करने वाले, मन आदि के व्यापार (प्रयोग) से निर्वर्तित-निष्पादित अधिकरण — आत्मप्रयोगनिर्वर्तित कहलाता है। दूसरों को हिंसादि पाप-कार्यों में प्रवृत्त कराने से उत्पन्न वचनादि अधिकरण परप्रयोग- निर्वर्तित कहलाता है और आत्मा के द्वारा दूसरों को प्रवृत्ति कराने के द्वारा उत्पन्न हुआ अधिकरण ' तदुभय-प्रयोगनिर्वर्तित' कहलाता है। स्थावर आदि जीवों में वचनादि का व्यापार नहीं होता, तथापि उनमें अविरतिभाव की अपेक्षा से परप्रयोग- निर्वर्तित अधिकरण कहा गया है।
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शरीर, इन्द्रिय एवं योगों को बांधते हुए जीवों के विषय में अधिकरणी-अधिकरण-विषयक
प्ररूपणा
१८. कति णं भंते! सरीरगा पन्नता ?
गोयमा ! पंच सरीरगा पन्नत्ता, तं जहा - ओरालिए जाव कम्मए ।
[१८ प्र.] भगवन् ! शरीर कितने प्रकार के कहे गए हैं ?
[१८ उ.] गौतम ! शरीर पांच प्रकार के कहे गए हैं यथा— औदारिक यावत् कार्मण ।
१९. कति णं भंते! इंदिया पत्रत्ता ?
गोयमा ! पंच इंदिया पन्नत्ता, तं जहा – सोतिंदिए जाव फासिंदिए ।
[१९. प्र.] भगवन् ! इन्द्रियाँ कितनी कही गई हैं ?
[१९ उ.] गौतम ! इन्द्रियाँ पांच कही गई है, यथा— श्रोत्रेन्द्रिय यावत स्पर्शेन्द्रिय ।
२०. कतिविहे णं भंते! जोए पन्नत्ते ?
गोयमा ! तिविहे जो पन्नत्ते, तं जहा—मणजोए वइजोए कायजोए ?
[२० प्र.] भगवन् ! योग कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
[२० उ. ] गौतम ! योग तीन प्रकार के कहे गए हैं यथा—
–मनोयोग, वचनयोग और काययोग । २१. [१] जीवे णं भंते ! ओरालियसरीरं निव्वत्तेमाणे किं अधिकरणी, अधिकरणं ?
गोयमा ! अधिकरणी वि, अधिकरणं पि ।
[२१-१ प्र.] भगवन् ! औदारिकशरीर को बांधता (निष्पन्न करता ) हुआ जीव अधिकरणी है या अधिकरण है ?
[२१ - १ उ.] गौतम ! वह अधिकरणी भी है और अधिकरण भी है ।
१. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६९९
(ख) भगवती, (हिन्दीविवेचन ) भा. ५, पृ. २५१२