Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
एवं चेव। [३ प्र.] भगवन् ! क्या लोक के दक्षिणी चरमान्त में जीव हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । [३ उ.] गौतम! (इस विषय में) पूर्वोक्त प्रकार से सब कहना चाहिए। ४. एवं पच्चत्थिमिल्ले वि, उत्तरिल्ले वि। [४] इसी प्रकार पश्चिमी चरमान्त और उत्तरी चरमान्त के विषय में भी कहना चाहिए। ५. लोगस्स णं भंते ! उवरिल्ले चरिमंते किं जीवा. पुच्छा।
गोयमा ! नो जीवा, जीवदेसा वि जाव अजीवपएसा वि। जे जीवदेसा ते नियमं एगिदियदेसा य अणिंदियदेसा य, अहवा एगेंदियदेसा य अणिंदियदेसा य बेंदियस्स य देसे, अहवा एगिदियदेसा य अणिंदियदेसा य बेइंदियाण य देसा। एवं मझिल्लविरहितो जाव पंचिंदियाणं। जे जीवप्पएसा ते नियम एगिंदियप्पदेसा य अणिंदियप्पएसा य, अहवा एगिंदियप्पदेसा य अणिंदियप्पदेसा य बेइंदियस्स य पदेसा, अहवा एगिदियपदेसा य अणिंदियपदेसा य बेइंदियाण य पदेसा। एवं आदिल्लविरहिओ जाव पचिंदियाणं। अजीवा जहा दसमसए तमाए (स. १०. उ. १ सु. १७) तहेव निरवसेसं।
[५ प्र.] भगवन् ! लोक के उपरिम चरमान्त में जीव हैं, इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न।
[५ उ.] गौतम! वहाँ जीव नहीं हैं, किन्तु जीव के देश हैं, यावत् अजीव के प्रदेश भी हैं । जो जीव के देश हैं, वे नियमतः एकेन्द्रियों के देश और अनिन्द्रियों के देश हैं । अथवा एकेन्द्रियों के और अनिन्द्रियों के देश तथा द्वीन्द्रिय का एक देश है, अथवा एकेन्द्रियों के और अनिन्द्रियों के देश तथा द्वीन्द्रियों के देश हैं । इस प्रकार बीच के भंग को छोड़ कर द्विकसंयोगी सभी भंग यावत् पंचेन्द्रिय तक कहना चाहिए।
यहाँ जो जीव के प्रदेश हैं, वे नियमतः एकेन्द्रियों के प्रदेश हैं और अनिन्द्रियों के प्रदेश हैं। अथवा एकेन्द्रियों के प्रदेश, अनिन्द्रियों के प्रदेश और एक द्वीन्द्रिय के प्रदेश हैं । अथवा एकेन्द्रियों के और अनिन्द्रियों के प्रदेश तथा द्वीन्द्रियों के प्रदेश हैं । इस प्रकार प्रथम भंग के अतिरिक्त शेष सभी भंग यावत् पंचेन्द्रियों तक कहना चाहिए। दशवें शतक (के प्रथम उद्देशक सू. १७) में कथित तमादिशा की वक्तव्यता के अनुसार यहाँ पर अजीवों की वक्तव्यता कहनी चाहिए।
६. लोगस्स णं भंते! हेट्ठिल्ले चरिमंते किं जीवा. पुच्छा।
गोयमा! नो जीवा, जीवदेसा वि जाव अजीवप्पएसा वि। जे जीवदेसा ते नियमं एगिदियदेसा, अहवा एगिदियदेसा यबेंदियस्स य देसे, अहवा एगिंदियदेसा य बेइंदियाण य देसा।एवं मझिल्लविरहिओ जाव अणिंदियाणं, पदेसा आदिल्लविरहिया सव्वेसिं जहा पुरथिमिल्ले चरिमंते तहेव। अजीवा जहा उवरिल्ले चरिमंते तहेव।
[६ प्र.] भगवन् ! क्या लोक के अधस्तन (नीचे के) चरमान्त में जीव हैं ? इत्यादि प्रश्न पूर्ववत्। [६ उ.] गौतम! वहाँ जीव नहीं हैं, किन्तु जीव के देश हैं, यावत् अजीव के प्रदेश भी हैं । जो जीव के देश