Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
गोमा ! जावं चणं से पुरिसे वासं वासति, वासं नो वासतीति हत्थं वा जाव उरुं वा आउंटावेति वा पसारेति वा तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव पंचर्हि किरियाहिं पुट्ठे।
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[१४ प्र.] भगवन्! वर्षा बरस रही है अथवा (वर्षा) नहीं बरस रही है ? – यह जानने के लिए कोई पुरुष अपने हाथ, पैर, बाहु या ऊरु (जांघ) को सिकोड़े या फैलाए तो उसे कितनी क्रियाएँ लगती हैं ?
[१४ उ. ] गौतम! वर्षा बरस रही है या नहीं, यह जानने के लिए कोई पुरुष अपने हाथ यावत ऊरु को सिकोड़ता है या फैलाता है, तो उसे कायिकी आदि पांचों क्रियाएँ लगती हैं।
विवेचन — प्रस्तुत सूत्र में वर्षा का पता लगाने के लिए हाथ आदि अवयवों को सिकोड़ने और फैलाने में कायिकी, आधिकरणिकी, प्राद्वेषिकी, पारितापनिकी और प्राणतिपातकी, ये पांचों क्रियाएँ एक दूसरे प्रकार से लगती हैं, इस सिद्धान्त की प्ररूपणा की गई है ।
महर्द्धिक देव का लोकान्त में रहकर अलोक में अवयव-संकोचन-प्रसारण- असामर्थ्य
१५.[ १ ] देवे णं भंते! महिड्डीए जाव महेसक्खे लोगंते ठिच्चा पभू अलोगंसि हत्थं वा आउंटावेत्तए वा पसारेत्तए वा ?
णो इट्ठे समट्ठे ।
[१५-१ प्र.] भगवन् ! क्या महर्द्धिक यावत् महासुखसम्पन्न देव लोकान्त में रह कर अलोक में अपने हाथ यावत् ऊरु को सिकोड़ने और पसारने में समर्थ है ?
[१५ - १ उ.] गौतम! यह अर्थ समर्थ (शक्य) नहीं ।
[ २ ] से केणट्ठेणं भंते ! एवं वुच्चति 'देवे णं महिड्डीए जाव लोगंते ठिच्चा णो पभू अलोगंसि हत्थं वा जाव पसारेत्तए वा ? '
गोयमा ! जीवाणं आहारोवचिया पोग्गला, बोंदिचिया पोग्गला, कलेवरचिया पोग्गला, पोग्गलमेव पप्प जीवाण य अजीवाण या गतिपरियाए आहिज्जइ, अलोए णं नेवत्थि जीवा, नेवत्थि पोग्गला, से तेणट्ठेणं जाव पसारेत्तए वा ।
सेवं भंते! सेवं भंते ! त्ति !
॥ सोलसमे सए : अट्ठमो उद्देसओ समत्तो ॥ १६-८ ॥
[१५-२ प्र.] भगवान्! क्या कारण है कि महर्द्धिक देव लोकान्त में रह कर अलोक में अपने हाथ यावत् ऊरु को सिकोड़ने और पसारने में समर्थ नहीं ?
[ १५-२ उ.] गौतम! जीवों के अनुगत आहारोपचित पुद्गल, शरीरोपचित पुद्गल और कलेवरोपचित पुद्गल होते हैं तथा पुद्गलों के आश्रित ही जीवों और अजीवों की गतिपर्याय कही गई है। अलोक में न तो जीव हैं और न ही पुद्गल हैं। इसी कारण पूर्वोक्त देव यावत् सिकोड़ने और पसारने में समर्थ नहीं हैं।