Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सोलहवाँ शतक : उद्देशक-८
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हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं ।
विवेचन—लोक में रह कर अलोक में गति न होने का कारण — जीव के साथ रहे हुए पुद्गल आहाररूप में, शरीररूप में और कलेवररूप में तथा श्वासोच्छ्वास आदि के रूप में उपचित होते हैं । अर्थात् पुद्गल जीवानुगामी स्वभाव वाले होते हैं। जिस क्षेत्र में जीव होते हैं, वहीं पुद्गलों की गति होती है। इसी प्रकार पुद्गलों के आश्रित जीवों का और पुद्गलों का गतिधर्म होता है। यानी जिस क्षेत्र में पुद्गल होते हैं उसी क्षेत्र में as और पुद्गलों की गति होती है। अलोक में धर्मास्तिकाय न होने से वहाँ न तो जीव और पुद्गल है और न उनकी गति होती है ।"
१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ७१७
॥ सोलहवाँ शतक : आठवाँ उद्देशक समाप्त ॥