Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
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उपभोग करता हुआ विचरता था । वह इस सम्पूर्ण (केवलकल्प) जम्बूद्वीप नामक द्वीप की ओर अपने विपुल अवधिज्ञान का उपयोग लगा-लगाकर जम्बूद्वीप नामक द्वीप में श्रमण भगवान् महावीर को देख रहा था। यहाँ तृतीय शतक ( के प्रथम उद्देशक, सू. ३३) के कथित ईशानेन्द्र की वक्तव्यता के समान शक्रेन्द्र की वक्तव्यता कहनी चाहिए। विशेषता यह है कि शक्रेन्द्र आभियोगिक देवों को नहीं बुलाता। इसकी पैदल ( पदाति) - सेना का अधिपति हरिणैगमेषी (हरी) देव है, (जो) सुघोषा घंटा (बजाता) है। ( शक्रेन्द्र का) विमाननिर्माता पालक देव है। इसके निकलने का मार्ग उत्तरदिशा है। दक्षिण-पूर्व (अग्निकोण) में रतिकर पर्वत है। शेष सभी वर्णन उसी प्रकार कहना चाहिए। यावत् शक्रेन्द्र भगवान् के निकट उपस्थित हुआ और अपना नाम बतला कर भगवान् की पर्युपासना करने लगा। ( श्रमण भगवान् महावीर ने ) ( शक्रेन्द्र तथा परिषद् को) धर्मकथा कही, यावत् परिषद् वापिस लौट गई।
९. तए णं से सक्के देविंदे देवराया समणस्स भगवतो महावीरस्स अंतियं धम्मं सोच्चा निसम्म ० समणं भगवं महावीरं वंदति नम॑सति, २ त्ता एवं वयासी—
[९] तदनन्तर देवेन्द्र देवराज शक्र श्रमण भगवान् महावीर से धर्म श्रवण कर एवं अवधारण करके अत्यन्त हर्षित एवं सन्तुष्ट हुआ । उसने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दन - नमस्कार करके इस प्रकार प्रश्न पूछा—
१०. कतिविहे णं भंते ! ओग्गहे पन्नत्ते ?
सक्का ! पंचविहे ओग्गहे पन्नत्ते, तं जहा — देविंदोग्गहे रायोग्गहे गाहावतिओग्गहे सागारिओहे साधम्म ओग्गहे ।
[१० प्र.] भगवन् ! अवग्रह कितने प्रकार का कहा गया है ?
[१० उ. ] हे शक्र ! अवग्रह पांच प्रकार का कहा गया है यथा – (१) देवेन्द्रावग्रह, (२) राजावग्रह, (३) गाथापति (गृहपति) - अवग्रह, (४) सागारिकावग्रह और (५) साधर्मिकाऽवग्रह |
११. जे इमे भंते! अज्जत्ताए समणा निग्गंथा विहरंति एएसि णं अहं ओग्गहं अणुजाणामीति कट्टु समणं भगवं महावीरं वंदति नम॑सति, २ त्ता तमेव दिव्वं जाणविमाणं दुरूहति, दु० २ जामेव दिसं पाउब्भूए तामेव दिसं पडिगए।
[११] (यह सुनकर शक्रेन्द्र ने भगवान् से निवेदन किया— ) भगवन् ! आजकल जो ये श्रमण निर्ग्रन्थ विचरण करते हैं, उन्हें मैं अवग्रह की अनुज्ञा देता हूँ । यों कह कर श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन - नमस्कार करके शक्रेन्द्र, उसी दिव्य यान विमान पर चढ़ा और फिर जिस दिशा (जिधर ) से आया था, उसी दिशा की ओर ( उधर ही) लौट गया ।
धर्म
विवेचन — प्रस्तुत चार सूत्रों (सू. ८ से ११ तक) में शक्रेन्द्र, द्वारा भगवान् के दर्शन, वन्दन - नमन, ' श्रवण, अवग्रहविषयक प्रश्नकरण, समाधानप्राप्ति, एवं अवग्रहानुज्ञा-प्रदान का निरूपण किया गया है।