Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
लम्बी एक बड़ा रस्सी को देखता हुआ देखे, उसे काटने का प्रयत्न करता हुआ काट डाले। (फिर) मैंने उसे काट दिया, ऐसा स्वयं अनुभव करे, ऐसा स्वप्न देखकर तत्काल जाग जाए तो वह उसी भव में सिद्ध होता है, यावत् सर्वदुःखों का अन्त करता है।
२५. इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं किण्हसुत्तगं वा जाव सुक्किलसुत्तगं वा पासमाणे पासति, उग्गोवेमाणे उग्गोवेइ, उग्गोवितमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव जाव अंतं करेति।
[२५] कोई स्त्री या पुरुष स्वप्न के अन्त में, एक बड़े काले सूत को या सफेद सूत को देखता हुआ देखे, और उसके उलझे हुए पिण्ड को सुलझाता हुआ सुलझा देता है और मैंने उसे सुलझाया है, ऐसा स्वयं को माने, ऐसा स्वप्न देखकर शीघ्र ही जागृत हो, तो वह उसी भव में सिद्ध होता है, यावत् सर्वदुःखों का अन्त करता है।
२६. इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं अयरासिं वा तंबरासिं वा तउयरासिं वा सीसगरासिं वा पासमाणे पासति, दुरूहमाणे दुरूहति, दुरूढमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुझइ, दोच्चे भवग्गहणे सिज्झति जाव अंतं करेति।
[२६] कोई स्त्री या पुरुष, स्वप्न के अन्त में, एक बड़ी लोहराशि, तांबे की राशि, कथीर की राशि अथवा शीशे की राशि देखने का प्रयत्न करता हुआ देखे। उस पर चढ़ता हुआ चढ़े तथा अपने आपको (उस पर) चढ़ा हुआ माने। ऐसा स्वप्न देखकर तत्काल जागृत हो, तो वह उसी भव में सिद्ध होता है, यावत् सर्वदुःखों का अन्त करता है।
२७. इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं हिरण्णरासिं वा सुवण्णरासिं वा रयणरासिं वा वइररासिं वा पासमाणे पासइ, दुरूहमाणे दुरूहइ, दुरूढमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्झति, तेणेव भवग्गहणेणं सिझति जाव अंतं करेति।
_[२७] कोई स्त्री या पुरुष, स्वप्न के अन्त में एक महान् चाँदी का ढेर, सोने का ढेर, रत्नों का ढेर अथवा वज्रों (हीरों) का ढेर देखता हुआ देखे, उस पर चढता हुआ चढ़े, अपने आपको उस पर चढ़ा हुआ माने, ऐसा स्वप्न देखकर तत्क्षण जागृत हो, तो वह उसी भव में सिद्ध होता है, यावत् सब दुःखों का अन्त करता है।
२८. इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं तणरासिं वा जहा तेयनिसग्गे ( स. १५ सु. ८२ ) जाव' अवकररासिं वा पासमाणे पासति, विक्खिरमाणे विक्खिरइ, विक्खिण्णमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्झति, तेणेव जाव अंतं करेति।
_ [२८] कोई स्त्री या पुरुष, स्वप्न के अन्त में एक महान् तृणराशि (घास का ढेर) तथा तेजोनिसर्ग नामक पन्द्रहवें शतक के (सू. ८२ के ) अनुसार यावत् कचरे का ढेर देखता हुआ देखे, उसे बिखेरता हुआ बिखेर दे,
और मैंने बिखेर दिया है, ऐसा स्वयं को माने, ऐसा स्वप्न देखकर तत्काल जागृत हो तो वह उसी भव में सिद्ध होता है, यावत् सब दुःखों का अन्त करता है।
१. 'जाव' पद सूचक पाठ—'पत्तरासीति तयारासीति भुसरासीति तुसरासीति वा गोमयरासीति वा....' -अ.वृ.पत्र ७१३