Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [१२-१ प्र.] भगवन् ! जीव साधिकरणी है या निरधिकरणी है ? [१२-१ उ.] गौतम ! जीव साधिकरणी है, निरधिकरणी नहीं है। [२.] से केणटेणं. पुच्छा। गोयमा ! अविरतिं पडुच्च, से तेणटेणं जाव नो निरहिकरणी। [१२-२ प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा है? इत्यादि प्रश्न। [१२-२ उ.] गौतम ! अविरति की अपेक्षा जीव साधिकरणी है, निरधिकरणी नहीं है। १३. एवं जाव वेमाणिए। [१३] इसी प्रकार वैमानिकों तक कहना चाहिए। १४. [१] जीवे णं भंते! किं आयाहिकरणी, पराहिकरणी, तदुभयाधिकरणी ? गोयमा ! आयाहिकरणी वि, पराधिकरणी वि, तदुभयाहिकरणी.वि। [१४-१ प्र.] भगवन्! जीव आत्माधिकरणी है, पराधिकरणी है, अथवा उभयाधिकरणी है? [१४-१ उ.] गौतम ! जीव आत्माधिकरणी भी है, पराधिकरणी भी है और तदुभयाधिकरणी भी है। [२] से केणद्वेणं भंते! एवं वुच्चति जाव तदुभयाधिकरणी वि? गोयमा ! अविरतिं पडुच्च। से तेण?णं जाव तदुभयाधिकरणी वि। [१४-२ प्र.] भगवन् ! ऐसा किस हेतु से कहा गया है कि जीव यावत् तदुभयाधिकरणी भी है ? [१२-२ उ.] गौतम ! अविरिति की अपेक्षा जीव यावत् तदुभयाधिकरणी भी है। १५. एवं जाव वेमाणिए। [१५] इसी प्रकार वैमानिक तक जानना चाहिए। - १६.[१] जीवाणं भंते ! अधिकरणे किं आयप्पयोगनिव्वत्तिए, परप्पयोगनिव्वत्तिए तदुभयप्प- . योगनिव्वत्तिए ?
गोयमा ! आयप्पयोगनिव्वत्तिए वि, परप्पयोगनिव्वत्तिए वि, तदुभयप्पयोगनिव्वत्तिए वि।
[१६-१ प्र.] भगवन् ! जीवों का अधिकरण आत्मप्रयोग से होता है, परप्रयोग से उत्पन्न होता है, अथवा तदुभयप्रयोग से होता है?
[१६-१ उ.] गौतम ! जीवों का अधिकरण आत्मप्रयोग से भी निष्पन्न होता है, परप्रयोग से भी और तदुभयप्रयोग से निष्पन्न होता है।
[२] से केणढेणं भंते! एवं वुच्चइ ? गोयमा ! अविरतिं पडुच्च। से तेणटेणं जाव तदुभयप्पयोगनिव्वत्तिए वि। [१६-२ प्र.] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा है?