Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
अपना भाण्डोपकरण (सामान) रखा। तत्पश्चात् वह शरवण सन्निवेश में उच्च-नीच - मध्यम कुलों के गृहसमूह
भिक्षाचर्या के लिए घूमता हुआ वसति में चारों ओर सर्वत्र अपने निवास के लिए स्थान की खोज करने लगा । सर्वत्र पूछताछ और गवेषणा करने पर भी जब कोई निवासयोग्य स्थान नहीं मिला तो उसने उसी गोबहुल ब्राह्मण की गोशाला के एक भाग में वर्षावास (चतुर्मास) बिताने के लिए निवास किया।
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१८. तए णं सा भद्दा भारिया नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्टमाणय रातिंदियाणं वीतिक्कंताणं सुकुमाल जाव पडिरूवं दारगं पयाता ।
[१८] तदनन्तर (वहाँ रहते हुए) उस भद्रा भार्या ने पूरे नौ मास और साढ़े सात रात्रि-दिन व्यतीत होने पर एक सुकुमाल हाथ-पैर वाले यावत् सुरूप पुत्र को जन्म दिया।
१९. तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो एक्कारसमे दिवसे वीतिकंते जाव बारसाहदिवसे अयमेतारूवं गोण्णं गुणनिष्फन्नं नामधेज्जं करेंति - जम्मा णं अम्हं इमे दारए, गोबहुलस्स माहणस्स गोसालाए जाए तं होउ णं अम्हं इमस्स दारगस्स नामधेज्जं 'गोसाले, गोसाले' त्ति । तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो नामज्जं करेंति 'गोसाले ' त्ति ।
[१९] तत्पश्चात् ग्यारहवाँ दिन बीत जाने पर यावत् बारहवें दिन उस बालक के माता-पिता ने इस प्रकार गौण (गुणयुक्त), गुणनिष्पन्न नामकरण किया कि हमारा यह बालक गोबहुल ब्राह्मण की गोशाला में जन्मा है, इसलिए हमारे इस बालक का नाम गोशालक हो और तभी उस बालक के माता-पिता ने उस बालक का नाम 'गोशालक' रखा।
विवेचन — प्रस्तुत पांच सूत्रों (सू. १५ १९ तक) में गोशालक के जन्मस्थान, जन्म और नामकरण का वृतान्त प्रस्तुत किया गया है– (१) शरवण सन्निवेश में वेदादि निपुण गोबहुल ब्राह्मण की गोशाला थी । (२) गोशालक का पिता मंखली अपनी गर्भवती पत्नी भद्रा को लेकर शरवण सन्निवेश में गोबहुल की गोशाला में आया। भिक्षाटन के समय उसने सारा गाँव छान मारा, किन्तु उसे अन्य कोई निवासयोग्य स्थान न मिला, अतः वहीं वर्षावास बिताने हेतु पड़ाव डाला। (३) उसी गोशाला में भद्रा ने एक बालक को जन्म दिया । (४) १२ वें दिन माता-पिता ने उस बालक का गुणनिष्पन्न गोशालक नाम रक्खा।
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यौवनवयप्राप्त गोशालक द्वारा स्वयं मंखवृति
२०. तए णं गोसाले दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णायपरिणतमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते सयमेव पाडिएक्कं चित्तफलगं करेति, सय० क० २ चित्तफलगहत्थगए मंखत्तणेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरति ।
[२०] तदनन्तर वह बालक गोशालक बाल्यावस्था को पार करके एवं विज्ञान से परिपक्व बुद्धि वाला होकर यौवन अवस्था को प्राप्त हुआ । तब उसने स्वयं व्यक्तिगत (स्वतंत्र) रूप से चित्रफलक तैयार किया। व्यक्तिगत रूप से तैयार किये हुए चित्रफलक को स्वयं हाथ में लेकर मंखवृत्ति से आत्मा को भावित करता हुआ
१. वियाहपण्णत्ति (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) भा. २, पृ. ६९२