Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
४५४
विहरामि ।
[३२] उस समय आनन्द गाथापति ने मुझे आते हुए देखा, इत्यादि सारा वृत्तान्त विजय गाथापति के समान समझना चाहिए। विशेषता यह है कि 'मैं विपुल खण्ड - खाद्यादि (खाजा आदि) भोजन-सामग्री से (भगवान् महावीर को) प्रतिलाभूंगा'; यों विचार कर ( वह आनन्द गाथापति ) सन्तुष्ट (प्रसन्न हुआ। शेष समग्र वृत्तान्त (यहाँ से लेकर) यावत् — 'मैं तृतीय मासक्षमण स्वीकार करके रहा; (यहाँ तक) पूर्ववत् (कहना चाहिए)।
३३. तए णं अहं गोयमा ! तच्चमासक्खमणपारणगंसि तंतुवायसालाओ पडिनिक्खामि, तं० प० २ तहेव जाव अडमाणे सुणंदस्स गाहावतिस्स्स गिहं अणुपविट्ठे ।
[३३] तदनन्तर, हे गौतम! तीसरे मासक्षमण के पारणे के लिए मैंने तन्तुवायशाला से बाहर निकल कर यावत् सुनन्द गाथापति के घर में प्रवेश किया ।
३४. तए णं से सुणंदे गाहावती०, एवं जहेव विजए गाहावती, नवरं ममं सव्वकामगुणिएणं भोयणेणं पडिलाभेति । सेसं तं चेव जाव चउत्थं मासक्खमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरामि ।
[३४] तब सुनन्द गाथापति ने ज्यों ही मुझे आते हुए देखा, इत्यादि सारा वर्णन विजय गाथापति के समान (कहना चाहिए।) विशेषता यह है कि उसने (सुनन्द ने) मुझे सर्वकामगुणित ( सर्वरसों से युक्त) भोजन से प्रतिलाभित किया। (यहाँ से लेकर) शेष सर्ववृतान्त, यावत् मैं चतुर्थ मासक्षमण स्वीकार करके विचरण करने लगा; (यहाँ तक) पूर्ववत् ( कहना चाहिए।)
३५. तीसं णं नालंदाए बाहिरियाए अदूरसामंते एत्थ णं कोल्लाए नामं सन्निवेसे होत्था सन्निवेसवण्णओ।
[३५] उस नालन्दा के बाहरी भाग से कुछ दूर 'कोल्लाक' नाम सन्निवेश था। सन्निवेश का वर्णन (पूर्ववत् जान लेना चाहिए । )
३६. तत्थ णं कोल्लाए सन्निवेसे बहुले नामं माहणे परिवसइ अड्ढे जाव अपरिभूए रिउव्वेद जाव सुपरिनिट्ठिए यावि होत्था ।
[३६] उस कोल्लाक सन्निवेश में बहुल नामक ब्राह्मण (माहन) रहता था। यह आढ्य यावत् अपरिभूत था और ऋग्वेद (आदि वैदिक धर्मशास्त्रों) में यावत् निपुण था ।
३७. तए णं से बहुले माहणे कत्तियचातुम्मासियपाडिवगंसि विउलेणं महु-घयसंजुत्तेणं परमन्त्रेणं माहणे आयामेत्था |
[३६] उस बहुल ब्राह्मण ने कार्तिकी चौमासी की प्रतिपदा के दिन प्रचुर मधु और घृत से संयुक्त परमान्न (खीर) का भोजन ब्राह्मणों को कराया एवं आचामित (कुल्ले आदि के द्वारा मुख शुद्ध) कराया।
३८. तए णं अहं गोयमा ! चउत्थमासक्खमणपारणगंसि तंतुवायसालाओ पडिनिक्खमामि, तं० प० २ णालंदं बाहिरियं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छामि, नि० २ जेणेव कोल्लाए सन्निवेसे तेणेव उवागच्छामि,