Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र से जो प्रधान (समझदार) मनुष्य था, उसने कहा—'श्रमण भगवान् महावीर सत्यवादी हैं, मंखलीपुत्र गोशालक मिथ्यावादी है।'
विवेचन—निष्कर्ष—'सत्यमेव जयते नानृतम्' इस लोकोक्ति के अनुसार अन्त में सत्य की विजय हुई। भ. महावीर को गोशालक ने झूठा एवं दम्भी सिद्ध करना चाहा, मारने की धमकी देकर मारणप्रयोग भी किया किन्तु उसकी एक न चली। अन्त में भगवान् को लोगों ने सत्यवादी स्वीकार किया। अहप्पहाणे: अर्थ-यथाप्रधान-मुख्य समझादार व्यक्ति। . निर्ग्रन्थ श्रमणों को गोशालक के साथ धर्मचर्चा करने का भगवान् का आदेश
८२. 'अज्जो ! ' ति समणे भगवं महावीरे समणे निग्गंथे आमंतेत्ता एवं वयासी—अज्जो ! से जहानामए तणरासी ति वा कट्ठरासी ति वा पत्तरासी ति वा तयारासी ति वा तुसरासी ति वा भुसरासी ति वा गोमयरासी ति वा अवकररासी ति वा अगणिझामिए अगणिझूसिए अगणिपरिणामिए हयतेये गयतेये नट्ठतेये भट्ठतेये लुत्ततेये विणट्ठतेये जाव एवामेव गोसाले मंखलीपुत्ते ममं वहाए सरीरगंसि तेयं निसिरेत्ता हयतेये गततेये जाव विणट्ठतेये जाए, तं छंदेणं अजो ! तुब्भे गोसालं मंखलिपुत्तं धम्मियाए पडिचोयणाए पडिचोएह, धम्मियाए पडिचोयणाए पडिचोएत्ता धम्मियाए पडिसारणाए पडिसारेह, धम्मियाए पडिसारणाए पडिसारेत्ता धम्मिएणं पडोयारेणं पडोयारेह, धम्मिएणं पडोयारेणं पडोयारेत्ता अट्ठहि य हेतूहि य पसिणेहि य वागरणेहि य कारणेहि य निप्पट्टपसिणवागरणं करेह।
[८२] तत्पश्चात् श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने श्रमण निर्ग्रन्थों को सम्बोधित कर इस प्रकार कहा'हे आर्यो ! जिस प्रकार तृणराशि, काष्ठराशि, पत्रराशि, त्वचा (छाल की) राशि, तुषराशि, भूसे की राशि, गोमय (गोबर) की राशि और अवकर राशि (कचरे के ढेर) को अग्नि से थोड़ा-सा जल जाने पर, आग में झोंक देने (या बहुत झुलस जाने) पर एवं अग्नि से परिणामान्तर होने पर उसका तेज हत हो (मारा) जाता है, उसका तेज चला जाता है, उसका तेज नष्ट और भ्रष्ट हो जाता है, उसका तेज लुप्त (अदृश्य) एवं विनष्ट हो जाता है; इसी प्रकार मंखलिपुत्र गोशालक द्वारा मेरे वध के लिए अपने शरीर से तेज (तेजोलेश्या) निकाल देने पर, अब उसका तेज हत हो (मारा) गया है, उसका तेज चला गया है यावत्-उसका तेज (नष्ट-भ्रष्ट) विनष्ट हो गया है। इसलिए, आर्यो ! अब तुम भले ही मंखलिपुत्र गोशालक को धर्मसम्बन्धी प्रतिनोदना (उसके मत के विरुद्ध वादविवाद) से प्रति प्रेरित करो, धर्मसम्बन्धी (उसके मत से विरुद्ध बात की) प्रतिस्मारणा (स्मृति) करा कर (विस्मृत अर्थ की) स्मृति कराओ। फिर धार्मिक प्रत्युपचार द्वारा उसका प्रत्युपचार करो, इसके बाद अर्थ, हेतु, प्रश्न व्याकरण (व्याख्या) और कारणों के सम्बन्ध में (उत्तर न दे सके ऐसे) प्रश्न पूछ कर उसे निरुत्तर (निपृष्ट) कर दो।'
विवेचन—पहले (६६ वें सूत्र में) भगवान् ने गोशालक के साथ धार्मिक चर्चा या वादविवाद करने के १. (क) वियाहपण्णत्तिसुत्तं भा. २, पृ. ७१९
(ख) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. ५, पृ. २४३९