Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र दी। यदि आयुष्य की स्थिति कुछ अधिक होती तो निश्चित ही वह भगवान् महावीर के चरणों में गिर कर सच्चे अन्त:करण से क्षमायाचना करता और आलोचना-प्रायश्चित्त ग्रहण कर शुद्ध होता।'
कठिन शब्दार्थ—उच्चावय-सवह-साविए—अनेक प्रकार के शपथों से युक्त (शापित)। सुंबेणंमूंज या छाल की रस्सी से। उभह-थूकना। आकड्ड-विकटुिं—इधर-उधर घसीटते हुए। आजीविक स्थविरों द्वारा अप्रतिष्ठापूर्वक गुप्त मरणोत्तरक्रिया करके प्रकट में प्रतिष्ठापूर्वक मरणोत्तरक्रिया
११०. तए णं ते आजीविया थेरा गोसालं मंखलिपुत्तं कालगयं जाणित्ता हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स दुवाराई पिहेतिं; दु० पि० २ हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स बहुमज्झदेसभाए सावत्थिं नगरि आलिहंति, सा० आ० २ गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स सरीरगं वामे पाए सुंबेण बंधंति, वा० बं० २ तिक्खुत्तो मुहे उट्ठहंति, ति० उ० २ सावत्थीए नगरीए सिंग्घाडग० जाव पहेसु आकविकड्ढेि करेमाणा णीयं णीयं सद्देणं उग्घोसेमाणा उग्घोसेमाणा एवं वयासि—'नो खलु देवाणुप्पिया ! गोसाले मंखलिपुत्ते जिणे जिणप्पलावी जाव विहरिए, एस णं गोसाले चेव मंखलिपुत्ते समणघायए जाव छ उमत्थे चेव कालगते, समणे भगवं महावीरे जिणे जिणप्पलावी जाव विहरइ।' सवहपडिमोक्खणगं करेंति, सवहपडिमोक्खगणं करेत्ता दोच्चं पि पूयासक्कारथिरीकरणट्ठयाए गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स वामाओ पादाओ सुंबं मुयंति, सुंबं मु० २ हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स दुवारवयणाई अवगुणंति, अव० २ गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स सरीरगं सुरभिणा गंधोदएणं ण्हाणेति, तं चेव जाव महया इड्डिसक्कारसमुदएणं गोसालस्स मंखलिपुत्तसस सरीरगस्स नीहरणं करेंति।
[११०] तदनन्तर उन आजीविक स्थविरों ने मंखलिपुत्र गोशालक को कालधर्म-प्राप्त हुआ जानकर हालाहला कुम्भारिन की दूकान के द्वार बन्द कर दिये। फिर हालाहला कुम्भारिन की दूकान के ठीक बीचों-बीच (जमीन पर) श्रावस्ती नगरी का चित्र बनाया। फिर मंखलिपुत्र गोशालक के बाएँ पैर को मूंज की रस्सी से बाँधा। तीन बार उसके मुख में थूका । फिर उक्त चित्रित की हुए श्रावस्ती नगरी के शृंगाटक यावत् राजमार्गों पर (उसके शव को) इधर-उधर घसीटते हुए मन्द-मन्द स्वर से उद्घोषणा करते हुए इस प्रकार कहने लगे—'हे देवानुप्रियो ! मंखलिपुत्र गोशालक जिन नहीं, किन्तु जिनप्रलापी होकर यावत् विचरा है। यह मंखलिपुत्र गोशालक श्रमणघातक है, (जो) यावत् छद्मस्थ अवस्था में ही कालधर्म को प्राप्त हुआ है। श्रमण भगवान् महावीर वास्तव में जिन हैं, जिनप्रलापी हैं यावत् विचरते हैं।' इस प्रकार (औपचारिक रूप से शपथ का पालन करके वे स्थविर गोशालक द्वारा दिलाई गई) शपथ से मुक्त हुए। इसके पश्चात् मंखलिपुत्र गोशालक के प्रति (जनता की) पूजासत्कार (की भावना) को स्थिरीकरण करने के लिए मंखलिपुत्र गोशालक के बाएँ पैर में बंधी मूंज की रस्सी खोल दी और हालाहला कुंभारिन की दूकानं के द्वार भी खोल दिये। फिर मंखलिपुत्र गोशालक के मृत शरीर को
१. वियाहपण्णत्तिसुत्तं, भा २ पृ. ७२५-७२६ २. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ३८५