Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पन्द्रहवाँ शतक
गोशालक की दुर्दशा -निमित्तक विविध चेष्टाएँ
८६. तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते जस्सट्ठाएं हव्वमागए तमट्ठे असाहेमाणे, रुंदाई पलोएमाणे, दीहुण्हाई नीससमाणे, दाढियाए लोमाइं लुंचमाणे, अवडुं कंडूयमाणे, पुयलिं पप्फोडेमाणे, हत्थे विणिमाणे, दोहि वि पाएहिं भूमिं कोट्टेमाणे 'हाहा अहो ! हओऽहमस्सी ति कट्टु समणस्स भगवतो महावीरस्स अंतियाओ कोट्टयाओ चेतियाओ पडिनिक्खमति, पडि० २ जेणेव सावत्थी नगरी जेणेव हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणे तेणेव उवागच्छति, ते० उ० २ हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणंसि अंबकूणगहत्थगए मज्जपाणगं पियमाणे अभिक्खणं गायमाणे अभिक्खणं नच्चमाणे अभिक्खणं हालाहलाए कुंभकारीए अंजलिकम्मं करेमाणे सीयलएणं मट्टियापाणएणं आयंचणिउदएणं गायाइं परिसिंचेमाणे विहरइ ।
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[८६] मंखलिपुत्र गोशालक जिस कार्य को सिद्ध करने के लिए एकदम आया था, उस कार्य को सिद्ध नहीं कर सका, तब वह ( हताश होकर) चारों दिशाओं में लम्बी दृष्टि फेंकता हुआ, दीर्घ और उष्ण निःश्वास छोड़ता हुआ, दाढ़ी के बालों को नोचता हुआ, गर्दन के पीछे के भाग को खुजलाता हुआ, बैठक के कूल्हे के प्रदेशको ठोकता हुआ, हाथों को हिलाता हुआ और दोनों पैरों से भूमि को पीटता हुआ; 'हाय, हाय ! ओह मैं मारा गया' यों बड़बड़ाता हुआ, श्रमण भगवान् महावीर के पास से, कोष्ठक - उद्यान से निकला और श्रावस्ती नगरी में जहाँ हालाहला कुम्भकारी की दूकान थी, वहाँ आया । वहाँ आम्रफल हाथ में लिए हुए मद्यपान करता हुआ, (मद्य के नशे में) बार- बार गाता और नाचता हुआ, बार बार हालाहला कुम्भारिन को अंजलिकर्म (हाथ जोड़ कर प्रणाम) करता हुआ, मिट्टी के बर्तन में रखे हुए मिट्टी मिले हुए शीतल जल (आतञ्चनिकोदक) से अपने शरीर का परिसिंचन करता हुआ। (शरीर पर छांटता हुआ) विचरने लगा ।
विवेचन — प्रस्तुत सूत्र (८६) में पराजित, अपमानित तेजोलेश्या से दग्ध एवं हताश गोशालक की तीन प्रकार की कुचेष्टाओं का वर्णन है, जो उसकी दुर्दशा की सूचक है
(१) पराजित और तेजोलेश्या रहित होने के कारण दीर्घ निःश्वास, दाढी के बाल नोचना, गर्दन के पृष्ठ भाग को खुजलाना, भूमि पर पैर पटकना आदि चेष्टाएँ गोशालक द्वारा की गईं।
(२) अपमान, पराजय और अपयश को भुलाने के लिए गोशालक ने मद्यपान और उसके नशे में गाना, नाचना, हालाहला को हाथ जोड़ना आदि चेष्टाएँ अपनाईं ।'
(३) तेजोलेश्याजनित दाह को शान्त करने के लिए गोशालक ने चूसने के लिए हाथ में आम्रफल (आम की गुठली ) ली तथा कुम्भार के यहाँ मिट्टी के घड़े में रखा हुआ व मिट्टी मिला हुआ ठंडा जल शरीर पर सींचने (छिड़कने लगा ।
१. (क) वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ - टिप्पणयुक्त) भा. २, पृ. ७२०
(ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६८४