Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पन्द्रहवाँ शतक
सर्प द्वारा वे वणिक् सब ओर अनिमेष दृष्टि से देखे जाने पर किराने के समान आदि माल एवं बर्तनों व उपकरणों सहित एक ही प्रहार से कूटाघात ( पाषाणमय महायन्त्र के आघात) के समान तत्काल जला कर राख का ढेर कर दिए गए। उन वणिकों में जो वणिक् उन वणिकों का हितकामी यावत् हित-सुख - निःश्रेयसकामी था, उस पर नागदेवतां ने अनुकम्पायुक्त होकर भण्डोपकरण सहित उसे अपने नगर में पहुँचा दिया।
'इसी प्रकार, हे आनन्द ! तुम्हारे धर्माचार्य, धर्मोपदेशक श्रमण ज्ञातपुत्र ने उदार (प्रधान) पर्याय, प्राप्त की है। देवों, मनुष्यों और असुरों सहित इस लोक में 'श्रमण भगवान् महावीर', श्रमण भगवान् महावीर', इस रूप में उनकी उदार कीर्ति, वर्ण, शब्द और श्लोक ( श्लाघा, या धन्यवाद) फैल रहे हैं, गुंजायमान हो रहे हैं, स्तुति के विषय बन रहे हैं । (सर्वत्र उनकी प्रंशसा या स्तुति हो रही है)। इससे अधिक की लालसा करके यदि वे आज से मुझे (या मेरे विषय में) कुछ भी कहेंगे तो जिस प्रकार उस सर्पराज ने एक ही प्रहार से उन वणिकों को कूटाघात के समान जलाकर भस्मराशि कर डाला, उसी प्रकार मैं भी अपने तप और तेज से एक ही प्रहार से उन्हें भस्मराशि (राख का ढेर) कर डालूंगा। जिस प्रकार उन वणिकों के हितकामी यावत् निः श्रेयसकामी वणिक् पर उस नागदेवता ने अनुकम्पा की और उसे भण्डोपकरण सहित अपने नगर में पहुँचा दिया था, उसी प्रकार है आनन्द ! मैं भी तुम्हारा संरक्षण और संगोपन करूंगा । इसलिए, हे आनन्द ! तुम जाओ और अपने धर्माचार्य धर्मोपदेशक श्रमण ज्ञातपुत्र को यह बात कह दो ।'
विवेचन – गोशालक की धमकी — प्रस्तुत चार सूत्रों (सू. ६२ से ६५ ) में भगवान् महावीर को धमकी देने के लिए उनके शिष्य आनन्द स्थविर को गोशालक द्वारा कहे गए एक उपमा - दृष्टान्त का निरूपण है।
दृष्टान्तसार - अर्थलुब्ध कुछ वणिक् धन की खोज में अपनी गाड़ियों में बहुत-सा माल भर कर निकले। उन्होंने साथ में भोजन - पानी भी ले लिया था । किन्तु ज्यों ही वे एक भयंकर अटवी में कुछ दूर तक गये कि साथ लिया हुआ पानी समाप्त हो गया। वे सब पानी की खोज में चले ! उन्हें कुछ दूर जाने पर एक बांबी मिली। उसके ऊँचे उठे हुए चार शिखर थे । सब वणिकों ने उसके प्रथम शिखर को तोड़ने का निश्चय 'किया। तोड़ा तो उसमें से स्वच्छ जल निकला । सबने प्यास बुझाई। साथ में पानी भर लिया। फिर दूसरे शिखर को तोड़ने का निश्चय करके उसे तोड़ा तो उसमें से शुद्ध सोना निकला। सबने उसे बर्तनों और गाड़ियों में भर लिया। फिर उन्होंने तीसरे शिखर को तोड़ने का निश्चय करके उसे भी तोड़ा तो उत्तम मणिरत्न निकले । सब बर्तनों और गाड़ियों में भर लिये । अब उन्होंने लोभवश चौथे शिखर को भी तोड़ने का निश्चय किया । किन्तु उनमें से एक हितैषी ने उन सबको तोड़ने से रोका, कहा—इसे तोड़ने से उपद्रव होगा, किन्तु उसकी बात न मानकर उन्होंने चौथे शिखर को तोड़ा तो उसमें एक भयंकर दृष्टिविष सर्प निकला। उसने उन सबको मालसामान सहित भस्म कर डाला, किन्तु उस हितैषी वणिक् पर अनुकम्पा करके उसे माल सहित अपने नगर पहुँचा दिया। गोशालक ने इस दृष्टान्त को भगवान् महावीर पर इस प्रकार घटित किया कि ज्ञातपुत्र श्रमण ने अब तक बहुत यशकीर्ति, प्रसिद्धि, प्रशंसा आदि अर्जित कर ली हैं। अब लोभवश यदि वह अधिक प्रसिद्धि