Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र संच्चिट्ठति। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते वेसियायणं बालतवस्सिं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी—किं भवं मुणी मुणिए जाव सेजायरए ? तए णं से वेसियायणे बालतवस्सी गोसालेणं मंखलिपुत्तेण दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे आयावणभूमीओ पच्चोरुभति, आयावण० प० २ तेयासमुग्घाएणं समोहन्नति, ते० स० सत्तट्ठपयाई पच्चोसक्कति, स० प० २ गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स वहाए सरीरगंति तेय निसिरति। __[५०] तभी मंखलीपुत्र गोशालक ने वैश्यायन बालतपस्वी को (ज्यों ही) देखा, (त्यों ही) मेरे पास से धीरे-धीरे खिसक कर वैश्यायन बालतपस्वी के निकट आया और उसे इस प्रकार कहा—"क्या आप तत्त्वज्ञ या तपस्वी मुनि हैं या जुओं के शय्यातर (स्थानदाता) हैं ?"
वैश्यायन बालतपस्वी ने मंखलिपुत्र गोशालक के इस कथन को आदर नहीं दिया और न ही इसे स्वीकार किया, किन्तु वह मौन रहा। इस पर मंखलिपुत्र गोशालक ने दूसरी और तीसरी बार वैश्यायन बालतपस्वी को फिर इसी प्रकार पूछा—आप तत्त्वज्ञ या तपस्वी मुनि हैं या जुओं के शय्यातर हैं ?
गोशालक ने जब दूसरी और तीसरी बार वैश्यायन बालतपस्वी को इस प्रकार कहा (छेड़ा) तो वह शीघ्र कुपित हो (क्रोध से भड़क) उठा यावत् क्रोध से दाँत पीसता हुआ आतापनाभूमि से नीचे उतरा। फिर तैजससमुद्घात करके वह सात-आठ कदम पीछे हटा। इस प्रकार मंखलिपुत्र गोशालक के मध (भस्म करने) के लिए उसने अपने शरीर से (उष्ण) तेजोलेश्या बाहर निकाली।
५१. तए णं अहं गोयमा ! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अणुकंपणट्ठयाए वेसियायणस्स बालतवस्सिस्स तेयपडिसाहरणट्ठयाए एत्थ णं अंतरा सीयलियं तेयलेस्सं निसिरामि, जाए सा ममं सीयलियाए तेयलेस्साए वेसियायणस्स बालतवस्सिस्स उसिणा तेयलेस्सा पडिहया।
_[५१] तदनन्तर, हे गौतम ! मैंने मंखलिपुत्र गोशालक पर अनुकम्पा करने के लिए, वैश्यायन बालतपस्वी की तेजोलेश्या का प्रतिसंहरण करने के लिए शीतल तेजोलेश्या बाहर निकाली। जिससे मेरी शीतल तेजोलेश्या से वैश्यायन बालतपस्वी की उष्ण तेजोलेश्या का प्रतिघात हो गया।
५२. तए णं से वेसियायणे बालतवस्सी ममं सीयलियाए तेयलेस्साए साउसिणं तेयलेस्सं पडिहयं जाणित्ता गोसालस्स य मंखलिपुत्तस्स सरीरगस्स किंचि आबाहं वा वाबाहं वा छविच्छेदं वा अकीरमाणं पासित्ता साअं उसिणं तेयलेस्सं पडिसाहरति, साउसिणं तेयलेस्सं पडिसाहरित्ता ममं एवं वयासी–से गतमेयं भगवं !, गतमेयं भगवं !
[५२] तत्पश्चात् मेरी शीतल तेजोलेश्या से अपनी उष्ण तेजोलेश्या का प्रतिघात हुआ तथा गोशालक के शरीर को थोड़ी या अधिक पीड़ा या अवयवक्षति नहीं हुई जान कर वैश्यायन बालतपस्वी ने अपनी उष्ण तेजोलेश्या वापस खींच (समेट) ली और उष्ण तेजोलेश्या को समेट कर उसने मुझ से फिर इस प्रकार कहा'भगवन् ! मैंने जान लिया, भगवन् ! मैं समझ गया।'