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________________ २८८ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र अणंतेहिं। [२९-४ प्र.] (भगवन् ! धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश) जीवास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है? [२९-४ उ.] (गौतम ! वह) अनन्त(जीव-)प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। [५] केवतिएहिं पोग्गलऽस्थिकायपएसेहिं पुढे ? अणंतेहिं। [२९-५ प्र.] (भगवन् ! वह) पुद्गलास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? [२९-५ उ.] (गौतम ! वह) अनन्त प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। [६] केवतिएहिं अद्धासमएहिं पुढे ? सिय पुढे, सिय नो पुढे। जइ पुढे नियमं अणंतेहिं। [२९-६ प्र.] (भगवन् ! वह धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश) अद्धाकाल के कितने समयों से स्पृष्ट होता है? [२९-६ उ.] (गौतम ! वह) कथंचित् स्पृष्ट होता है और कथंचित् स्पृष्ट नहीं होता। यदि स्पृष्ट होता है तो नियमतः अनन्त समयों से स्पृष्ट होता है। ३०. [१] एगे भंते ! अहम्मऽत्थिकायपएसे केवतिएहिं धम्मऽथिकायपएसेहिं पुट्टे ? गोयमा ! जहन्नपए, चउहि, उक्कोसपए सत्तहिं। [३०-१ प्र.] भगवन् ! अधर्मास्तिकाय का एक प्रदेश, धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? [३०-१ उ.] (गौतम ! वह अधर्मास्तिकाय का एक प्रदेश,) धर्मास्तिकाय के जघन्य पद में चार और उत्कृष्ट पद में सात प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। [२] केवतिएहिं अहम्मऽथिकायपदेसेहिं पुढे ? जहन्नपए तीहिं, उक्कोसपदे छहिं। सेसं जहा धम्मऽस्थिकायस्स ? [३०-२ प्र.] (भगवन् ! अधर्मास्तिकाय का एक प्रदेश ) कितने अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों से स्पृष्ट होता [३०-२ उ.] (गौतम ! वह) जघन्य पद में तीन और उत्कृष्ट पद में छह प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? शेष सभी वर्णन धर्मास्तिकाय के वर्णन के समान समझना चाहिए। ३१. [१] एगे भंते ! आगासऽस्थिकायपएसे केवतिएहिं धम्मऽथिकायपएसेहिं पुढे ? सिय पुढे, सिय नो पुढे। जति पुढे जहन्नपदे एक्कणं वा दोहिं वा तीहिं वा चउहिं वा, उक्कोसपदे सत्तहिं।
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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