Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
३२०
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र लेते हैं, अधिक विश्राम लेते हैं, या अधिक सोते हैं,।[चिट्ठति–ठहरते या खड़े रहते हैं। निसीयंति—बैठते हैं। तुयटृति- करवट बदलते हैं। हसंति-हंसते हैं। रमंति—पासों से खेलते हैं। कीलंति—कामक्रीडा करते हैं। किड्डंति—क्रीडा करते हैं। मोहयंति—मोहित करते हैं अर्थात् विमुग्ध होकर प्रणय करते हैं।] किड्डारतिपत्तियं—क्रीडा में रति-आनन्द लेने के लिए, अथवा क्रीडा और रति के निमित्त।
उदायन नरेश वृत्तान्त भगवान् का राजगृहनगर से विहार, चम्पापुरी में पदार्पण
७. तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नदा कदायि रायगिहाओ नगराओ गुणसिलाओ जाव विहरति।
[७] तदनन्तर श्रमण भगवान् महावीर किसी अन्य (एक) दिन राजगृह नगर के गुणशील नामक चैत्य से यावत् (अन्यत्र) विहार कर देते हैं।
८. तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी होत्थ। वण्णओ।* पुण्णभद्दे चेतिए। वण्णओ। तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कदायि पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे जाव विहरमाणे जेणेव चंपानगरी, जेणेव पुण्णभद्दे चेतिए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता जाव विहरइ।
[८] उस काल, उस समय में चम्पा नाम की नगरी थी। (उसका) वर्णन औपपातिकसूत्र में नगरीवर्णन के अनुसार जानना चाहिए। (उसमें) पूर्णभद्र नाम का चैत्य था। (उसका) वर्णन (करना चाहिए) किसी दिन श्रमण भगवान् महावीर पूर्वानुपूर्वी से (क्रमश:) विचरण करते हुए यावत् विहार करते हुए जहाँ चम्पा नगरी थी और जहाँ (उसका) पूर्णभद्र नामक चैत्य था, वहाँ पधारे यावत् विचरण करने लगे।
विवेचन—प्रस्तुत दो सूत्रों (सू. ७-८) में भगवान् महावीर स्वामी के राजगृह नगर से विहार का तथा चम्पा नगरी में पदार्पण का वर्णन किया है। चम्पा नगरी में उनका पदार्पण क्यों हुआ, उसका रहस्य आगे के सूत्रों से प्रकट होगा। उदायन नृप, राजपरिवार, वीतिभयनगर आदि का परिचय
९. तेणं कालेणं तेणं समएणं सिंधुसोवीरेसु जणवएसु वीतीभए नामं नगरे होत्थ। वण्णओ।*
[९] उस काल, उस समय सिन्धु-सौवीर जनपदों में वीतिभय नामक नगर था। (उसका) वर्णन (करना चाहिए)।
१०. तस्स णं वीतीभयस्स नगरस्स बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसिभाए, एत्थ णं मियवणे नामं उज्जाणे होत्था। सव्वोउय० वण्णओ।*
१. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६१७-६१८
(ख) भगवती. हिन्दीविवेचन, भा. ५, पृ. २२२९ * 'वण्णओ' शब्द से सर्वत्र औपपातिकसूत्रानुसार वर्णन समझना।
- भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६१८