Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
चौदहवां शतक : उद्देशक-६
३९९ चौवीस दण्डकों में वोचिद्रव्य-अवीचिद्रव्याहार-प्ररूपणा
४. [१] नेरइया णं भंते ! किं वीचिदव्वाइं आहारेंति, अवीचिदव्वाइं आहारेंति ? गोयमा ! नेरतिया वीचिदव्वाइं पि आहारेंति, अवीचिदव्वाइं पि आहारैति। [४-१ प्र.] भगवन् ! नैरयिक जीव वीचिद्रव्यों का आहार करते हैं अथवा अवीचिद्रव्यों का ?
[४-१ उ.] गौतम ! नैरयिक जीव वीचिद्रव्यों का भी आहार करते हैं और अवीचिद्रव्यों का भी आहार करते हैं।
[२] से केण्टेणं भंते ! एवं वुच्चति नेरतिया वीचि० तं चेव जाव आहारैति' ?
गोयमा ! जे णं नेरइया एगपदेसूणाई पिं दव्वाइं आहारेंति ते णं नेरतिया वीचिदव्वाई आहारेंति जे णं पडिपुण्णाइं दव्वाइं आहारेंति ते णं नेरइया नेरतिया अवीचिदव्वाइं आहारेंति। से तेणटेणं ! गोयमा ! एवं वुच्चति जाव आहारेंति।
[४-२ प्र.] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता कि नैरयिक ........... यावत् अवीचिद्रव्यों का भी आहार करते हैं ?
[४-२ उ.] गौतम ! जो नैरयिक एक प्रदेश न्यून (कम) द्रव्यों का आहार करते हैं, वे वीचिद्रव्यों का आहार करते हैं और जो परिपूर्ण द्रव्यों का आहार करते हैं, वे नैरयिक अवीचिद्रव्यों का आहार करते हैं। इस कारण हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि नैरयिक जीव वीचिद्रव्यों का भी आहार करते हैं और अवीचिद्रव्यों का भी आहार करते हैं।
५. एवं जाव वेमाणिया। [५] इसी प्रकार वैमानिकों तक कहना चाहिए।
विवेचन—वीचिद्रव्यों और अवीचिद्रव्यों की परिभाषा—जितने पुद्गलों (द्रव्यसमूह) से सम्पूर्ण आहार होता है, उसे अवीचिद्रव्य आहार कहते हैं और सम्पूर्ण आहार से एक प्रदेश भी कम आहार होता है, उसे वीचिद्रव्य का आहार कहते हैं। शक्रेन्द्र से अच्युतेन्द्र तक देवेन्द्रों के दिव्य भोगों की उपभोगपद्धति
६. जाहे णं भंते ! सक्के देविंदे देवराया दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजिउकामे भवति से कहमिदाणिं पकरोति ?
गोयमा ! ताहे चेवणं से सक्के देविंदे देवराया एगं महं नेमिपडिरूवगं विउव्वति, एगंजोयणसयसहस्सं १. वीचि :-विवक्षितद्रव्याणां तदवयवानां च परस्परेण पृथक्भावः, ('विचिर् पृथक्भावे' इति वचनात्) । तत्र वीचिप्रधानानि द्रव्याणि वीचिद्रव्याणि एकादिप्रदेशन्यूनानीत्यर्थ : । एतन्निषेधाद् अवीचिद्रव्याणि।
- भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६४४