Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अट्ठमो उद्देसओ : 'अंतरे'
आठवाँ उद्देशक : (विविध पृथ्वियों का परस्पर) अन्तर रत्नप्रभापृथ्वी से लेकर ईषत्प्राग्भारापृथ्वी एवं अलोक पर्यन्त परस्पर अबाधान्तर की प्ररूपणा
१. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए सक्करप्पभाए य पुढवीए केवतियं अबाहाए अंतरे पण्णते?
गोयमा ! असंखेजाइं जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। [१ प्र.] भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी और शर्कराप्रभा पृथ्वी का कितना अबाधा-अन्तर कहा गया है ? [१ उ.] गौतम ! (इन दोनों नरक-पृथ्वियों का) अबाधा-अन्तर असंख्यात हजार योजन का कहा गया
२. सक्करप्पभाए णं भंते ! पुढवीए वालुयप्पभाए य पुढवीए केवतियं० ? एवं चेव। [२ प्र.] भगवन् ! शर्कराप्रभापृथ्वी और बालुकाप्रभापृथ्वी का कितना अबाधा-अन्तर कहा गया है ? [२ उ.] गौतम ! इसी प्रकार (पूर्ववत्) समझना चाहिए। ३. एवं जाव तमाए अहेसत्तमाए य। [३] इसी प्रकार (बालुकाप्रभापृथ्वी से लेकर) तम:प्रभा और अधःसप्तमपृथ्वी तक कहना चाहिए। ४. अहेसत्तमाए णं भंते ! पुढवीए अलोगस्स य केवतियं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ? गोयमा ! असंखेज्जाइं जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। [४ प्र.] भगवन् ! अध:सप्तमपृथ्वी और अलोक का कितना अबाधा-अन्तर कहा गया है ? [४ उ.] गौतम ! (इन दोनों का ) असंख्यात हजार योजन का अबाधा-अन्तर कहा गया है। ५. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए जोतिसस्स य केवतियं० पुच्छा। गोयमा ! सत्तनउए जोयणसए अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। [५ प्र.] भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी और ज्योतिष्क-विमानों का कितना अबाधा-अन्तर कहा गया है ? [५ उ.] गौतम ! (इन दोनों का) अबाधा-अन्तर ७९० योजन कहा गया है। ६. जोतिसस्स णं भंते ! सोहम्मीसाणाण य कप्पाणं केवतियं० पुच्छा।