Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
निष्कर्ष — नैरयिकों के पुद्गल अनात्त, अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय और अमनोज्ञ होते हैं, जबकि एकेन्दिय से लेकर मनुष्यों तक के पुद्गल आत्त - अनात्त, इष्टानिष्ट, कान्ताकान्त, प्रियाप्रिय और मनोज्ञ-अमनोज्ञ, दोनों प्रकार के होते हैं। चारों ही जाति के देवों के पुद्गल एकान्त आत्त, इष्ट, प्रिय और मनोज्ञ होते हैं । महर्द्धिक वैक्रियशक्तिसम्पन्न देव की भाषासहस्र भाषणशक्ति
४३०
१२. [१] देवे णं भंते ! महिड्डीए जाव महेसक्खे रूवसहस्सं विउव्वित्ता पभू भासासहस्सं भासित्तए ?
हंता पभू ।
[१२-१ प्र.] भगवन् ! महर्द्धिक यावत् महासुखी देव क्या हजार रूपों की विकुर्वणा करके, हजार भाषाएँ बोलने में समर्थ है ?
[१२ - १ उ. ] हाँ, (गौतम ! ) वह समर्थ है ।
[२] सा णं भंते! किं एगा भासा, भासासहस्सं ?
गोयमा ! एगा णं सा भासा, णो खलु तं भासासहस्सं । [१२-२ प्र.] भगवन् ! वह एक भाषा है या हजार भाषाएँ हैं ? [१२-२ उ.] गौतम ! वह एक भाषा है, हजार भाषाएँ नहीं ।
विवेचन — हजार भाषाएँ बोलने में समर्थ, किन्तु एक समय में भाष्यमाण एक भाषा — महर्द्धिक यावत् महासुखी देव हजार रूपों की विकुर्वणा करके हजार भाषाएँ बोल सकता है, किन्तु एक समय वह जो किसी प्रकार की सत्यादि भाषा बोलता है, वह एक ही भाषा होती है, क्योंकि एक जीवत्व और एक उपयोग होने से वह एक भाषा कहलाती है, हजार भाषा नहीं ।"
सूर्य का अर्थ तथा उनकी प्रभादि के शुभत्व की प्ररूपणा
१३. तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं गोयमे अचिरुग्गतं बालसूरियं जासुमणाकुसुमपुजप्पगासं लोहीतंग पासति, पासित्ता जातसड्ढे जा समुप्पन्नकोउहल्ले जेणेव भमणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाव नमंसित्ता जाव एवं वयासी — किमिदं भंते ! सूरिए, किमिदं भंते ! सूरियस्स अट्ठे ?
गोमा ! सुभे सुरिए, सूभे सूरियस्स अट्ठे ।
[१३ प्र.] उस काल, उस समय में भगवान् गौतम स्वामी ने तत्काल उदित हुए जासुमन नामक वृक्ष के
१. (क) भगवती. ( हिन्दीविवेचन), भा. ५, पृ. २३५८
(ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६५६
२. वही, भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६५६