Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चौदहवां शतक : उद्देशक-८
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समर्थ है। ऐसा करके वह देव उस पुरुष को किंचित् मात्र भी आबाधा या व्याबाधा (थोड़ी या अधिक पीड़ा) नहीं पहुँचाता और न उसके अवयव का छेदन करता है। इतनी सूक्ष्मता से (अव्याबाध) देव नाट्यविधि दिखला सकता है। इस कारण, हे गौतम ! किसी को जरा भी बाधा न पहुँचाने के कारण वे अव्याबाधादेव कहलाते हैं।
विवेचन–अव्याबाधदेव कौन और किस जाति के ?—जो दूसरों को व्याबाधा-पीड़ा नहीं पहुँचाते हैं, वे अव्याबाध कहलाते हैं। ये लोकान्तिक देवों की जाति के होते हैं। लोकान्तिक देवों के ९ भेद हैं(१) सारस्वत, (२) आदित्य, (३) वह्नि, (४) वरुण (या अरुण), (५) गर्दतोय, (६) तुषित, (७) अव्याबाध, (८) अग्न्यर्च (मरुत) और (९) रिष्ट । इनमें से वे अव्याबाध देव हैं।'
कठिन शब्दार्थ—अच्छिपत्तंसि—नेत्र की पलक पर। उवदंसेत्तए पभू—दिखलाने में समर्थ है। आबाहं—किंचित् बाधा, वाबाहं—विशेष बाधा। छविच्छेयं—शरीर छेदन करने में। एसुहुमं—इस प्रकार का सूक्ष्म। सिर काट कर कमण्डलु में डालने की शक्रेन्द्र की वैक्रियशक्ति
२४. [१] पभू णं भंते ! सक्के देविंदे देवराया पुरिसस्स सीसं सापाणिणा असिणा छिदित्ता कमंडलुम्मि पक्खिवित्तएम ?
हंता, पभू।
[२४-१ प्र.] भगवन् ! क्या देवेन्द्र देवराज शक्र, अपने हाथ में ग्रहण की हुई तलवार से, किसी पुरुष का मस्तक काट कर कमण्डलु में डालने में समर्थ है ?
[२४-१ उ.] हाँ, गौतम ! वह समर्थ है। [२] से कहमिदाणिं पकरेइ ?
गोयमा ! छिंदिया छिंदिया व णं पक्खिवेजा, भिंदिया भिंदिया व णं पक्खिवेज्जा, कुट्टिया कुट्टिया व णं पक्खिवेज्जा चुण्णिया चुण्णिया व णं पक्खिवेज्जा, ततो पच्छा खिप्पामेव पडिसंघातेजा, नो चेव णं तस्स पुरिस्स किंचि आबाहं वा वाबाहं वा उप्पाएजा, छविच्छेयं पुण करेति, एसुहुमं च णं पक्खिवेज्जा।
[२४-२ प्र.] भगवन् ! वह (मस्तक को काट कर कमण्डलु में) किस प्रकार डालता है ? १. (क) व्याबाधन्ते-परं पीडयन्तीति व्याबाधास्तन्निषेधादव्याबाधा : ते च लोकान्तिकदेवमध्यगता द्रष्टव्याः । यदाह
सारस्सयमाइच्चा वण्ही वरुणा य गद्दतोया य।
तुसिया अव्वबाहा अग्गिच्चा देव रिट्ठा य॥ - भ. अ. वृ. पत्र ६५४. (ख) सारस्वतादित्य-वह्नयरुण-गर्दतोयतुषिताऽव्याबाभ-मरुतोऽरिष्टाश्च॥ - तत्त्वार्थ, अ. ४ २. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६५४