Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
अनुत्तरौपपातिक देव : स्वरूप, कारण और उपपातहेतुककर्म
१३. [१] अस्थि णं भंते ! अणुत्तरोववातिया देवा, अणुत्तरोववातिया देवा ? हंता अत्थि। [१३-१ प्र.] भगवन् ! क्या अनुत्तरौपपातिक देव, अनुत्तरौपपातिक होते हैं ? [१३-१ उ.] हाँ, गौतम ! होते हैं। . [२] से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चति 'अणुत्तरोववातिया देवा, अणुत्तरोववातिया देवा ?'
गोयमा ! अणुत्तरोवववातियाणं देवाणं अणुत्तरा सद्दा जाव अणुत्तरा फासा, से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ अणुत्तरोववातिया देवा, अणुत्तरोववातिया देवा।
[१३-२ प्र.] भगवन् ! वे अनुत्तरौपपातिक देव क्यों कहलाते हैं ?
[१३-२ उ.] गौतम ! अनुत्तरौपपातिक देवों को अनुत्तर शब्द, यावत्-(अनुत्तर रूप, अनुत्तर रस, अनुत्तर गंध और) अनुत्तर स्पर्श प्राप्त होते हैं, इस कारण, हे गौतम ! अनुत्तरौपपातिक देवों को अनुत्तरौपपातिक देव कहते हैं।
१४. अणुत्तरोववातिया णं भंते ! देवा केवतिएणं कम्मावसेसेणं अणुत्तरोववातियदेवत्ताए उववन्ना?
गोयमा. ! जावतियं छट्ठभत्तिए समणे निग्गंथे कम्मं निजरेति एवतिएणं कम्मावसेसेणं अणुत्तरोववातिया देवा अणुत्तरोववातियदेवत्ताए उववन्ना। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति।
॥ चौद्दसमै सए : सत्तमो उद्देसओ समत्तो ॥१४-७॥ [१४ प्र.] भगवन् ! कितने कर्म शेष रहने पर अनुत्तरौपपातिक देव, अनुत्तरौपपातिक देवरूप में उत्पन्न हुए
[१४ उ.] गौतम ! श्रमणनिर्ग्रन्थ षष्ठ-भक्त (बेले के) तप द्वारा जितने कर्मों की निर्जरा करता है, उतने कर्म शेष रहने पर अनुत्तरौपपातिक-योग्य साधु, अनुत्तरौपपातिक देवरूप में उत्पन्न हुए हैं।
हे भगवन् यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है; यों कह कर गौतम स्वामी, यावत् विचरते हैं।
विवेचन—प्रस्तुत दो सूत्रों में अनुत्तरौपपातिक देवों के अस्तित्व का समर्थन, उनके अनुत्तरौपपातिक होने का कारण तथा कितने कर्म अवशेष रहने पर अनुत्तरौपपातिक देवत्व प्राप्त होता है ? इसकी परिचर्चा की गई है।