Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र भगवान् का उत्तर—अनुत्तरौपपातिक देव विशिष्ट अवधिज्ञान द्वारा मनोद्रव्यवर्गणाओं को जानते-देखते है । अयोगी-अवस्था में अदर्शन के कारण हम दोनों के निर्वाणगमन का निश्चय करते हैं। इस अपेक्षा से यह कहा जाता है कि वे अपन दोनों के भावी तुल्य अवस्थारूप अर्थ को जानते-देखते हैं।' छह प्रकार का तुल्य
४. कतिविधे णं भंते ! तुल्लए पण्णत्ते ?
गोयमा ! छविहे तुल्लए पण्णत्ते, तं जहा—दव्वतुल्लए खेत्ततुल्लए कालतुल्लए भवतुल्लए भावतुल्लए संठाणतुल्लए।
[४ प्र.] भगवन् ! तुल्य कितने प्रकार का कहा गया हैं ?
[४ उ.] गौतम ! तुल्य छह प्रकार का कहा गया है यथा—(१) द्रव्यतुल्य, (२) क्षेत्रतुल्य, (३) कालतुल्य, (४) भवतुल्य, (५) भावतुल्य और (६) संस्थानतुल्य।
विवेचन—तुल्य शब्द का अर्थ-जिन एक कोटि के पदार्थों में एक दूसरे से समानता हो, वहाँ उनमें परस्पर तुल्यता का प्रतिपादन किया जाता है। यहाँ द्रव्यादि छह दृष्टियों से तुल्य का कथन है। द्रव्य-तुल्य-निरूपण
५. से केणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चइ ‘दव्वतुल्लए, दव्वतुल्लए' ?
गोयमा ! परमाणुपोग्गले परमाणुपोग्गलस्स दव्वतो तुल्ले, परमाणुपोग्गले परमाणुपोग्गलवतिरित्तस्स दव्वओ णो तुल्ले। दुपएसिए खंधे दुपएसियस्स खंधस्स दव्वओ तुल्ले, दुपएसिए खंधे दुपएसियवतिरित्तस्स खंधस्स दव्वओ णो तुल्ले। एवं जाव दसपएसिए। तुल्लसंखेजपएसिए खंधे तुल्लसंखेजपएसियस्स खंधस्स दव्वओ तुल्ले, तुल्लसंखेजपएसिए खंधे तुल्लसंखेजपएसियवतिरित्तस्स खंधस्स दव्वओ णो तुल्ले। एवं तुल्लअसंखेजपएसिए वि। तुल्लअणंतपदेसिए वि। से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चति ‘दव्वतुल्लए, दव्वतुल्लए।'
[५ प्र.] भगवान् ! 'द्रव्यतुल्य' द्रव्यतुल्य क्यों कहलाता है ? .
[५ उ.] गौतम ! एक परमाणु-पुद्गल, दूसरे परमाणु-पुद्गल से द्रव्यत: तुल्य है, किन्तु परमाणु-पुद्गल से भिन्न (व्यतिरिक्त) दूसरे पदार्थों के साथ द्रव्य से तुल्य नहीं है। इसी प्रकार एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध दूसरे द्विप्रदेशिक स्कन्ध से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, किन्तु द्विप्रदेशिक स्कन्ध से व्यतिरिक्त दूसरे स्कन्ध के साथ द्विप्रदेशिक स्कन्ध द्रव्य से तुल्य नहीं है। इसी प्रकार यावत् दशप्रदेशिक स्कन्ध तक कहना चाहिए। एक तुल्यसंख्यात-प्रदेशिक-स्कन्ध, दूसरे तुल्य-संख्यात-प्रदेशिक स्कन्ध के साथ द्रव्य से तुल्य है परन्तु तुल्य-संख्यातप्रदेशिक-स्कन्ध से व्यतिरिक्त दूसरे स्कन्ध के साथ द्रव्य से तुल्य नहीं है। इसी प्रकार तुल्य-असंख्यातप्रदेशिक-स्कन्ध के विषय में भी कहना चाहिए। तुल्य अनन्त-प्रदेशिक स्कन्ध के विषय में भी इसी प्रकार
१. (क) भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. ५, पृ. २३२८
(ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६४७