Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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दसमो उद्देसओ : 'समुग्घाए'
दसवाँ उद्देशक : (छाद्मस्थिक ) समुद्घात छानस्थिक समुद्घात : स्वरूप, प्रकार आदि का निरूपण
१. कति णं भंते ! छाउमत्थिया समुग्घाया पन्नत्ता ? गोयमा ! छ छाउमत्थिया समुग्धाया पन्नत्ता, तं जहा—वेदणासमुग्धाते, एवं छाउमत्थिया समुग्धाता नेतव्वा जहा पण्णवणाए जाव आहारगसमुग्धातो त्ति। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति जाव विहरति।
॥ तेरसमे सए : दसमो उद्देसओ समत्तो ॥१३-१०॥ [१ प्र.] भगवन् ! छाद्मस्थिक (छद्मस्थ जीवों का) समुद्घात कितने प्रकार का कहा गया है?
[१ उ.] गौतम ! छाद्मस्थिक समुद्घात छह प्रकार का कहा गया है। यथा-वेदनासमुद्घात इत्यादि छाद्मस्थिक समुद्घातों के विषय में (सब वर्णन) प्रज्ञापनासूत्र के छत्तीसवें समुद्घातपद के अनुसार यावत् आहारकसमुद्घात तक कहना चाहिए।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कहकर यावत् गौतम स्वामी विचरने लगे।
विवेचन—प्रस्तुत उद्देशक में प्रज्ञापनासूत्र के छत्तीसवें समुद्घातपद के अतिदेशपूर्वक छह छाद्मस्थिक समुद्घातों का निरूपण किया गया है। समुद्घात का व्युत्पत्त्यर्थ एवं परिभाषा-सम-एकीभाव से उत्प्रबलतापूर्वक, घात (निर्जरा) करना समुद्घात है। तात्पर्य यह है कि वेदना आदि के अनुभव के साथ एकीभूत आत्मा, कालान्तर में भोगने योग्य वेदनीयादि कर्मप्रदेशों की उदीरणा द्वारा उदय में लाकर प्रबलता से उनका घात करता है, वह समुद्घात कहलाता है।
छाद्मस्थिक का अर्थ-जिन्हें केवलज्ञान नहीं हुआ है, जो अकेवली हैं, वे छद्मस्थ हैं और उनका समुद्घात छाद्मस्थिक समुद्घात है। वह छह प्रकार का है—(१) वेदनासमुद्घात, (२) कषायसमुद्घात, (३) मारणान्तिक समुद्घात, (४) वैक्रियसमद्घात, (५) तैजस-समुद्घात और (६) आहारकंसमुद्घात । क्रमशः इनके लक्षण इस प्रकार हैं-वेदनासमुद्घात-वेदना के कारण होने वाला समुद्घात वेदनासमुद्घात है। वह असातावेदनीय कर्म की अपेक्षा से होता है। तात्पर्य यह है कि असातावेदनीय के कारण वेदनापीडित जीव अनन्तानन्त कर्मस्कन्धों से व्याप्त आत्मप्रदेशों को शरीर से बाहर निकालता है और उनसे मुख, उदर आदि छिद्रों एवं कान तथा स्कन्ध आदि अन्तरालों को पूर्ण करके लम्बाई-चौड़ाई में शरीर-परिमाण क्षेत्र में व्याप्त होकर अन्तर्मुहूर्त तक ठहरता है। उस.अन्तर्मुहूर्त काल में वह बहुत से असातावेदनीय कर्मपुद्गलों की निर्जरा कर लेता है, यह वेदनासमुदघात है।
कषायसमुद्घात–कषाय चारित्रमोहनीय कर्म के आश्रित क्रोधादि कषाय के कारण होने वाला समुद्घात कषायसमदघात है। तीव्र क्रोधादि कषाय से व्याकुल जीव जब अपने आत्मप्रदेशों को बाहर निकाल कर और