Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तइओ उद्देसओ : 'सरीरे' तृतीय उद्देशक : महाशरीर द्वारा अनगार आदि का व्यतिक्रमण द्वारगाथा— महक्काए सक्कारे सत्थेणं वीवयंति देवा उ।
वासं चेव य वाणा नेरइयाणं तु परिणामे॥ [द्वारगाथार्थ—(१) महाकाय, (२) सत्कार, (३) देवों द्वारा व्यतिक्रमण, (४) शस्त्र द्वारा अवक्रमण, (५) नैरयिकों द्वारा पुद्गल-परिणामानुभव, (६) वेदना-परिणामानुभव और (७) परिग्रह संज्ञानुभव। भावितात्मा अनगार के मध्य में से होकर जाने का देव का सामर्थ्य-असामर्थ्य
१.[१] देवे णं भंते ! महाकाये महासरीरे अणगारस्स भावियप्पणो मझमझेणं वीयीवएजा ? गोयमा ! अत्थेगए वीयीवएजा, अत्थेगतिए नो वीयीवएज्जा।
[१-१ प्र.] भगवन् ! क्या महाकाय और महाशरीर देव भावितात्मा अनगार के बीच में होकर-[उसे पार करके] निकल जाता है ?
[१-१ उ.] गौतम ! कोई निकल जाता है, और कोई नहीं जाता है। [२] से केणटेणं भंते ! एवं वुच्यति 'अत्थेगइए वीयीवएज्जा, अत्यंगतिए नो वीयीवएज्जा ?'.
गोयमा ! देवा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा—मायीमिच्छादिट्ठीउववनगा य, अमायीसम्मट्ठिीउववन्नगा य। तत्थ णं जे से मायीमिच्छद्दिट्टीउववन्नए देवे से णं अणगारं भावियप्पाणं पासति, पासित्ता नो वंदति, नो नमसंति, नो सक्कारेइ, नो सम्माणेई, नो कल्लाणं मंगलं देवतं जाव पज्जुवासति।से णं अणगारस्स भावियप्पणो मज्झंमज्झेणं वीयीवएज्जा तत्थ णं जे से अमायीसम्मट्टिीउववन्नए देवे, से णं अणगारं भावियप्पाणं पासति, पासित्ता वंदति नमंसति जाव पज्जवासइ, से णं अणगारस्स भावियप्पणो मझमझेणं नो वीयीवएज्जा। से तेणद्वेण गोयमा ! एवं वुच्चइ जाव नो वीयीवएज्जा।
[१-२ प्र.] भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है कि कोई बीच में अतिक्रमण करके चला जाता है, कोई नहीं जाता?
[१-२ उ.] गौतम ! देव दो प्रकार के कहे गये हैं, वे इस प्रकार—(१) मायी-मिथ्यादृष्टि-उपपन्नक एवं (२) अमायी-सम्यग्दृष्टि-उपपन्नक। इन दोनों में से जो मायी-मिथ्यादृष्टि-उपपन्नक देव होता है, वह भावितात्मा अनगार को देखता है, (किन्तु) देख कर न तो वन्दना-नमस्कार करता है, न सत्कार-सम्मान करता है, और न ही कल्याणरूप, मंगलरूप, देवतारूप एवं ज्ञानवान् मानता है, यावत् न पर्युपासना करता है। ऐसा वह देव भावितात्मा अनगार के बीच में होकर चला जाता है, किन्तु जो अमायी-सम्यग्दृष्टि-उपपन्नक देव होता है, वह