Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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नवमो उद्देसओ : अणगारे केयाघडिया
नौवाँ उद्देशक : अनगार में केयाघटिका ( वैक्रियशक्ति) १. रायगिहे जाव एवं वयासी—
[१] राजगृह नगर में (श्रमण भगवान् महावीर से गौतमस्वामी ने) यावत् इस प्रकार पूछारस्सी बंधी घडिया, स्वर्णादिमंजूषा, बांस आदि की चटाई, लोहादिभार लेकर चलने वाले व्यक्ति-सम भावितात्मा अनगार की वैक्रियशक्ति
२. से जहानामए केयि पुरिसे केयाघडियं गहाय गच्छेज्जा, एवामेव अणगारे वि भावियप्पा केयाघडियाकिच्चहत्थगतेणं अप्पाणेणं उड्डूं वेहासं उप्पएज्जा ?
गोयमा ! हंता, उप्पएजा।
[२ प्र.] भगवन् ! जैसे कोई पुरुष रस्सी से बंधी हुई घटिका (छोटा घड़ा) लेकर चलता है, क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी (वैक्रियलब्धि के सामर्थ्य से) रस्सी से बंधी हुई घटिका स्वयं हाथ में लेकर ऊँचे आकाश में उड़ सकता है ?
[२ उ.] हाँ गौतम ! (वह इस प्रकार) उड़ सकता है। ३. अणगारे णं भंते ! भावियप्पा केवतियाई पभू केयाघडियाकिच्चहत्थगयाइं रूवाइं विउवित्तए ?
गोयमा ! से जहानामए जुवतिं जुवाणे हत्थेणं हत्थे एवं जहा ततियसते पंचमुद्देसए ( स० ३ उ०५ सु० ३) जाव नो चेव णं संपत्तीए विउव्विंसु वा विउव्वति वा विउव्विस्सति वा।
[३ प्र.] भगवन् ! भावितात्मा अनगार रस्सी से बंधी हुई घटिका हाथ में ग्रहण करने रूप कितने रूपों की विकुर्वणा करने में समर्थ है ?
__ [३ उ.] गौतम ! तृतीय शतक के पंचम उद्देशक (सू. ३) में जैसे युवती-युवक के हस्तग्रहण का दृष्टान्त दे कर समझाया है, वैसे ही यहाँ समझना चाहिए। यावत् यह उसकी शक्तिमात्र है। सम्प्राप्ति (सम्पादन) द्वारा कभी इतने रूपों की विक्रिया की नहीं, करता भी नहीं और करेगा भी नहीं। .
४. से जहानामए केयि पुरिसे हिरणपेलं गहाय गच्छेज्जा, एवामेव अणगारे वि भावियप्या हिरणपेलहत्थकिच्चगतेणं अप्पाणेणं०, सेसं तं चेव।
[४ प्र.] भगवन् ! जैसे कोई पुरुष हिरण्य (चांदी) की मंजूषा (पेटी) लेकर चलता है, वैसे ही क्या भावितात्मा अनगार भी हिरण्य-मंजूषा हाथ में लेकर (विक्रिया-सामर्थ्य से) स्वयं ऊँचे आकाश में उड़ सकता है?
[४ उ.] हाँ, गौतम ! (इसका समाधान भी) पूर्ववत् समझना चाहिए।