Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तेरहवां शतक : उद्देशक-४
३०७ [३] केवतिया आगासऽस्थि० ? एक्को । [६०-३ प्र.] ( भगवन् ! वहाँ) आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ होते हैं ? [६०-३ उ.] (गौतम ! वहाँ आकाशास्तिकाय का) एक प्रदेश अवगाढ होता है। [४] केवइया जीवऽत्थि० ? अणंता। [६०-४ प्र.] (भगवन् ! वहाँ) जीवास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ होते हैं ? [६०-४ उ.] ( गौतम ! वहाँ जीवास्तिकाय के) अनन्त प्रदेश अवगाढ होते हैं। [५] एवं जाव अद्धासमया। [६०-५] इसी प्रकार अद्धासमय तक कहना चाहिए। ६१.[१] जत्थ णं भंते ! धम्मऽत्थिकाये ओगाढे तत्थ केवतिया धम्मत्थिकायपएसा ओगाढा ? नत्थि एक्को वि।
[६१-१ प्र.] भगवन् ! जहाँ धर्मास्तिकाय-द्रव्य अवगाढ होता है, वहाँ धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ होते हैं ? ..
[६१-१ उ.] ( गौतम ! वहाँ धर्मास्तिकाय का) एक भी प्रदेश अवगाढ नहीं होता। [२] केवतिया अहम्मऽस्थिकाय ? असंखेज्जा। [६१-२ प्र.] (भगवन् ! वहाँ ) अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ होते हैं ? [६१-२ उ.] (गौतम ! वहाँ ) अधर्मास्तिकाय के असंख्येय प्रदेश अवगाढ होते हैं। [३] केवतिया आगास० ? असंखेजा। [६१-३ प्र.] (वहाँ) आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ होते हैं ? [६१-३ उ.] (वहाँ उसके) असंख्येय प्रदेश अवगाढ होते हैं। [४] केवतियां जीवऽत्थिकाय ? अणंता। [६१-४ प्र.] (वहाँ ! ) जीवास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ़ होते हैं ?