Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पंचमो उद्देसओ : आहारो
पंचम उद्देशक : नैरयिकों आदि का आहार
चौवीस दण्डकों में आहारादि-प्ररूपणा
१. नेरतिया णं भंते ! किं सचित्ताहारा, अचित्ताहारा० ? पढमो नेरइयउद्देसओ निरवसेसो भाणियव्वो ।
सेवं भंते! सेव भंते ! ति० ।
तेरसमे सए : पंचमो उद्देसओ समत्तो ॥
[१ प्र.] भगवन् ! गरायक सचित्ताहारी हैं, अचित्ताहारी या मिश्राहारी हैं ?
[१ उ.] गौतम! नैरयिक न तो सचित्ताहारी हैं और न मिश्राहारी हैं, वे अचित्ताहारी हैं । ( इसी प्रकार असुरकुमार आदि के आहार के विषय में भी कहना चाहिए ।)
(इसके उत्तर में) यहाँ (प्रज्ञापनासूत्र के अट्ठाईसवें आहारपद का ) समग्र प्रथम उद्देशक कहना चाहिए। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कह कर यावत् गौतम स्वामी विचरते हैं। विवेचन — प्रस्तुत सूत्र में प्रज्ञापनासूत्र के २८ वें आहारपद के प्रथम उद्देशक के अतिदेश पूर्वक नैरयिक, असुरकुमार आदि २४ दण्डकवर्ती जीवों के आहार का प्ररूपण किया गया 1
॥ तेरहवाँ शतक : पंचम उद्देशक समाप्त ॥
१. देखिये —— पण्णवणासुत्तं भाग १, सू. १७९३-१८६४, पृ. ३९२-४०० (श्री महावीर जैन विद्यालय द्वारा प्रकाशित )