Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ ३ ] केवतिएहिं आगासऽत्थि० ?
सत्तहिं ।
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
[३२-३ प्र.] (भगवन् ! ) आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से वह स्पृष्ट होता है ? [३२-३ उ.] ( गौतम ! ) आकाशास्तिकाय के सात प्रदेशों से स्पृष्ट होता है।
[४] केवतिएहिं जीव तिथ० ?
सेसं जहा धम्मत्थिकायस्स ।
[३२-४ प्र.] भगवन् ! जीवास्तिकाय के कितने प्रदेशों से वह (जीवास्तिकायिक एक प्रदेश) स्पृष्ट होता
!
है ?
[ ३२-४ उ. ] (गौतम ! ) शेष सभी कथन धर्मास्तिकाय के प्रदेश के समान (समझना चाहिए।) ३३. एगे भंते ! पोग्गल त्थिकायपएसे केवतिएहिं धम्मत्थिकायपदेसेहिं० ?
एवं जाव जीवत्थिकायस्स ।
[३३] भगवन् ! एक पुद्गलास्तिकायिक प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश से स्पृष्ट होता है ?
[३३ उ.] गौतम ! जिस प्रकार जीवास्तिकाय के एक प्रदेश के ( विषय में कथन किया, उसी प्रकार यहाँ भी जानना चाहिए।)
विवेचन — प्रस्तुत पांच सूत्रों (सू. २९ से ३३ तक) में एक-एक धर्मास्तिकाय आदि पांचों के एक-एक प्रदेश का अन्यान्य अस्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पर्श होता है। इसकी प्ररूपणा अष्टम अस्तिकाय - स्पर्शनाद्वारं के माध्यम से की गई है ।
धर्मास्तिकाय के एक प्रदेश का अन्य अस्तिकाय- प्रदेशों से स्पर्श — धर्मास्तिकाय आदि के (एक) प्रदेश की जघन्य (सब से थोड़े ) अन्य प्रदेशों के साथ स्पर्शना, तब होती है, जब वह लोकान्त के एक कोने में होता है । उसकी स्थिति भूमि के निकटवर्ती घर के कोने के समान होती है। उस समय जघन्य पद में वहाँ धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश, ऊपर के एक प्रदेश से और पास प्रदेशों से एक विवक्षित प्रदेश स्पृष्ट होता है,
उसकी स्थापना इस प्रकार होती है
इस प्रकार धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश, जघन्यतः धर्मास्तिकाय तीन प्रदेशों से स्पृष्ट होता है तथा उत्कृष्टत: वह चारों दिशाओं के चार प्रदेशों से, और ऊर्ध्व तथा अधोदिशा के एक-एक प्रदेश से, इस प्रकार छह प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। स्थापना — ००० इस प्रकार होती है। धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश अधर्मास्तिकाय के तीन प्रदेशों से तो उसी प्रकार स्पष्ट होता है, जिस प्रकार धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश धर्मास्तिकाय के तीन प्रदेशों से स्पृष्ट होता है तथा धर्मास्तिकाय के एक प्रदेश के स्थान में रहे हुए अधर्मास्तिकाय के चौथे एक प्रदेश से भी वह स्पृष्ट होता है। इस प्रकार जघन्य पद में वह चार अधर्मास्तिकाय प्रदेशों से स्पृष्ट होता है । उत्कृष्ट पद में छह दिशाओं के छह प्रदेशों से और सातवें धर्मास्तिकाय के एक प्रदेश के
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