Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तेरहवां शतक : उद्देशक-४ स्थान में रहे हुए अधर्मास्तिकाय के एक प्रदेश से, यो सात प्रदेशों से स्पृष्ट होता है।
आकाशास्तिकाय के भी पूर्वोक्त सात प्रदेशों की स्पर्शना—होती है, क्योंकि लोकान्त में भी अलोकाकाश होता है।
जीवास्तिकाय के अनन्त प्रदेशों से—धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश स्पृष्ट होता है, क्योंकि धर्मास्तिकाय के एक प्रदेश पर और उसके पास अनन्त जीवों के अनन्तप्रदेश विद्यमान होते हैं।
इसी प्रकार वह पुद्गलास्तिकाय के भी अनन्त प्रदेशों से स्पृष्ट होता है।
अद्धाकाल के समयों की स्पर्शना—अद्धाकाल केवल समय क्षेत्र (ढाई द्वीप और दो समुद्र) में ही होता है, बाहर नहीं; क्योंकि समय, घड़ी, घण्टा आदि काल सूर्य की गति से ही निष्पन्न होता है। उससे धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश कदाचित् स्पृष्ट होता है और कदाचित् स्पृष्ट नहीं होता। यदि स्पृष्ट होता है तो अनन्त अद्धा-समयों से स्पृष्ट होता है, क्योंकि वे अनादि हैं, इसलिए उनकी अनन्त समयों की स्पर्शना होती है। अथवा वर्तमान समय विशिष्ट अनन्त द्रव्य उपचार से अनन्त समय कहलाते हैं। इसलिए अद्धाकाल अनन्त समयों से स्पृष्ट हुआ कहलाता है।
. अधर्मास्तिकाय के एक प्रदेश की दूसरे द्रव्यों के प्रदेशों से स्पर्शना—धर्मास्तिकाय के एक प्रदेश की स्पर्शना के समान समझना चाहिए।'
___ आकाशास्तिकाय के एक प्रदेश की धर्मास्तिकायादि से स्पर्शना-आकाशास्तिकाय का एक प्रदेश, लोक की अपेक्षा धर्मास्तिकाय के प्रदेश से स्पृष्ट होता है और अलोक की अपेक्षा स्पृष्ट नहीं होता। यदि स्पृष्ट होता है तो जघन्य पद में लोकान्तवर्ती धमास्तिकाय के एक प्रदेश से, शेष धर्मास्तिकाय प्रदेशों से निर्गत अग्रभागवर्ती अलोकाकाश का एक प्रदेश स्पृष्ट होता है। वक्रगत आकाशप्रदेश धर्मास्तिकाय के दो प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। जिस आलोककाश के एक प्रदेश के आगे, नीचे और ऊपर धर्मास्तिकाय के एक प्रदेश हैं, वह
धर्मास्तिकाय के तीन प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। स्थापना इस प्रकार है
| जो आकाश प्रदेश लोकान्त
के एक कोने में स्थित है, वह तदाश्रित (तदवगाढ़) धर्मास्तिकाय के एक प्रदेश से तथा ऊपर या नीचे रहे हुए अन्य एक प्रदेश से और दो दिशाओं में रहे हुए दो प्रदेशों से; इस प्रकार धर्मास्तिकाय के चार प्रदेशों से स्पृष्ट होता
है। स्थापना इस प्रकार है—__ जो आकाश प्रदेश, धर्मास्तिकाय केनीचे के एक प्रदेश से ऊपर के एक
प्रदेश से तथा दो दिशाओं में रहे हुए दो प्रदेशों से और वहीं रहे हुए धर्मास्तिकाय के एक प्रदेश से स्पृष्ट होता है,
१. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६११
(ख) भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. ५, पृ. २२०५