Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तेरहवां शतक : उद्देशक-४
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[३] केवतिएहिं आगासत्थिकाय ? बारसहिं। [३४-३ प्र.] भगवन् ! वे आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? [३४-३ उ.] गौतम ! वे आकाशास्तिकाय के १२ प्रदेशों से स्पृष्ट हैं। [४] सेसं जहा धम्मत्थिकायस्स। [३४-४] शेष सभी वर्णन धर्मास्तिकाय के समान जानना चाहिए। ३५. [१] तिन्नि भंते ! पोग्गलऽस्थिकायपदेसा केवतिएहिं धम्मत्थि० ? जहन्नपदे अट्ठहिं, उक्कोसपदे सत्तरसहिं। [३५-१ प्र.] भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय के तीन प्रदेश, धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ?
[३५-१ उ.] गौतम ! वे (तीन प्रदेश) जघन्य पद में (धर्मास्तिकाय के) आठ प्रदेशों और उत्कृष्ट पद में १७ प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं। . [२] एवं अहम्मत्थिकायपदेसेहि वि।
[३५-२] इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों से भी वे (तीन प्रदेश) स्पृष्ट होते हैं। [३] केवइएहिं आगासत्थि० ? सत्तरसहिं। [३५-३ प्र.] भगवन् ! आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से (वे स्पृष्ट होते हैं ?) [३५-३ उ.] गौतम ! वे सत्तरह प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं। [४] सेसं जहा धम्मत्थिकायस्स। [३५-४ प्र.] शेष सभी वर्णन धर्मास्तिकाय के समान जानना चाहिए।
३६. एवं एएणं गमेणं भाणियव्वा जाव दस, नवरं जहन्नपदे दोनि पक्खिवियव्वा, उक्कोसपए पंच।
[३६] इसी आलापक के समान यावत् दश प्रदेशों तक इसी प्रकार कहना चाहिए। विशेषता यह है कि जघन्य पद में दो और उत्कृष्ट पद में पांच का प्रक्षेप करना चाहिए।
३७. चत्तारि पोग्गलत्थिकाय ? जहन्नपदे दसहिं, उक्को० बावीसाए। [३७ प्र.] (भगवन् ! ) पुद्लास्तिकाय के चार प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ?