Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
वह इस प्रकार धर्मास्तिकाय पांच प्रदेशों से स्पृष्ट होता है । जो आकाशप्रदेश धर्मास्तिकाय के ऊपर के एक प्रदेश से, नीचे के एक प्रदेश से, तीन दिशाओं के तीन प्रदेशों से और वहीं रहे हुए एक प्रदेश से स्पृष्ट होता है; वह छह प्रदेशों से स्पृष्ट होता है । जो आकाशप्रदेश धर्मास्तिकाय के ऊपर और नीचे के एक-एक प्रदेश से तथा चार दिशाओं के चार प्रदेशों से और वहीं रहे हुए एक प्रदेश से स्पृष्ट होता है, वह इस प्रकार सात प्रदेशों से स्पृष्ट होता है । इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों से भी उसकी स्पर्शना जाननी चाहिए।
लोकाकाश और अलोकाकाश का एक प्रदेश, छहों दिशाओं में रहे हुए आकाशास्तिकाय के प्रदेशों से पृष्ट होता है। इसलिए उसकी स्पर्शना छह प्रदेशों से बताई गई है।
यदि अलोकाकाश का प्रदेशविशेष हो तो वह जीवास्तिकाय से स्पृष्ट नहीं होता, क्योंकि वहाँ जीवों का अभाव है। यदि लोकाकाश का प्रदेश हो तो, वह जीवास्तिकाय से स्पृष्ट होता है ।
इसी प्रकार पुद्गलास्तिकाय के प्रदेशों तथा अद्धाकाल के समयों की स्पर्शना के विषय में समझना चाहिए ।
यदि जीवास्तिकाय का एक प्रदेश लोकान्त के एक कोण में होता है तो धर्मास्तिकाय के चार प्रदेशों से (नीचे या ऊपर के एक प्रदेश से, दो दिशाओं के दो प्रदेशों से और एक तदाश्रित प्रदेश से ) स्पृष्ट होता है, क्योंकि स्पर्शक प्रदेश सबसे अल्प होते हैं । जीवास्तिकाय का एक प्रदेश, एक आकाशप्रदेशादि पर केवलिसमुद्घात के समय ही पाया जाता है। उत्कृष्ट पद में जीवास्तिकाय का एक प्रदेश धर्मास्तिकाय के सांत पूर्वोक्त प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों से भी स्पर्शना जाननी चाहिए।
जीवास्तिकाय के प्रदेश की स्पर्शना के समान पुद्गलास्तिकाय के प्रदेश की स्पर्शना भी जाननी
चाहिए ।
३४. [ १ ] दो भंते ! पोग्गल त्थिकायप्पदेसा केवतिएहिं धम्मत्थिकायपएसेहिं पुट्ठा ? जहन्नपए छहिं, उक्कोसपदे बारसहिं ।
[३४-१ प्र.] भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय के दो प्रदेश, धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट हैं ?
[३४ - १ उ.] गौतम ! वे जघन्य पद में धर्मास्तिकाय के छह प्रदेशों से और उत्कृष्ट पद में बारह प्रदेशों से
स्पृष्ट हैं।
[ २ ] एवं अहम्मत्थिकायप्पएसेहि वि ।
[३४-२] इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों से भी वे (पुद्गलास्तिकाय के दो प्रदेश) स्पृष्ट होते हैं।
१. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६११
(ख) भगवती. ( हिन्दीविवेचन) भा. ५, पृ. २२०६
२. (क) वही, पृ. २२०६
(ख) भगवती, अ. वृत्ति, पत्र ६११