Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तेरहवां शतक : उद्देशक-४
[५] केवतिया पोग्गलऽत्थि० ? अणंता। [५२-५ प्र.] (भगवन् ! वहाँ) पुद्गलास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ होते हैं ? [५२-५ उ.] ( गौतम ! उसके) अनन्त प्रदेश अवगाढ होते हैं। [६] केवतिया अद्धा समया० ? सिय ओगाढा, सिय नो ओगाढा। जाति ओगाढा अणंता। [५२-६ प्र.] भगवन् ! वहाँ अद्धासमय कितने अवगाढ होते हैं ?
[५२-६ उ.] अद्धासमय कदाचित् अवगाढ होते हैं और कदाचित् नहीं होते। यदि अवगाढ होते हैं तो अनन्त अद्धासमय अवगाढ होते हैं।
५३. [१] जत्थ णं भंते ! एगे अधम्मऽथिकायपएसे ओगाढे तत्थ केवतिया धम्मत्थि० ? एक्को ।
[५३-१ प्र.] भगवन् ! जहाँ अधर्मास्तिकाय का एक प्रदेश अवगाढ होता है, वहाँ धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ होते हैं ?
[५३-१ उ.] (गौतम ! वहाँ धर्मास्तिकाय का) एक प्रदेश अवगाढ होता है। [२] केवतिया अहम्मऽथि० ? नत्थि एक्को वि। [५३-२ प्र.] (वहाँ) अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ होते है ? [५३-२ उ.] (वहाँ) उसका एक प्रदेश भी अवगाढ नहीं होता। [३] सेसं जहा धम्मऽत्थिकायस्स। [५३-३] शेष (कथन) धर्मास्तिकाय के समान (समझना चाहिए।) ५४. [१] जत्थ णं भंते ! एगे आगासऽत्थिकायपएसे ओगाढे तत्थ केवतिया धम्मऽथिकाय? सिय ओगाढा, सिय नो ओगाढा। जति ओगाढा एक्को।
[५४-१ प्र.] भगवन् ! जहाँ आकाशास्तिकाय का एक प्रदेश अवगाढ होता है, वहाँ धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ होते हैं ?
[५४-१ उ.] गौतम ! वहाँ धर्मास्तिकाय के प्रदेश कदाचित् अवगाढ होते हैं और कदाचित् अवगाढ नहीं होते। यदि अवगाढ होते हैं तो एक प्रदेश अवगाढ होता है।