Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तेरहवां शतक : उद्देशक-४
२८९ [३१-१ प्र.] भगवन् ! आकाशास्तिकाय का एक प्रदेश, धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है? - [३१-१ उ.] (गौतम ! आकाशास्तिकाय का एक प्रदेश, धर्मास्तिकाय के प्रदेश से) कदाचित् स्पृष्ट होता है, कदाचित् स्पृष्ट नहीं होता। यदि स्पृष्ट होता है तो जघन्य पद में एक, दो, तीन या चार प्रदेशों से और उत्कृष्ट पद में सात प्रदेशों से स्पृष्ट होता है।
[२] एवं अहम्मऽत्थिकायपएसेहिं वि। [३१-२] इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों से स्पृष्ट के विषय में जानना चाहिए। [३] केवतिएहिं आगासऽस्थिकायपदेसेहिं० ? छहिं।
[३१-३ प्र.] (भगवन् ! आकाशास्तिकाय का एक प्रदेश) आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से (स्पृष्ट होता है ?)
[३१-३ उ.] (गौतम ! वह छह प्रदेशों से (स्पृष्ट होता है) [४] केवतिएहिं जीवऽत्थिकायपदेसेहिं पुढे ? सिय पुढे, सिए नो पुढे। जइ पुढे नियमं अणंतेहिं। [३१-४ प्र.] (भगवन् ! आकाशास्तिकाय का एक प्रदेश) जीवास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता
[३१-४ उ.] वह कदाचित् स्पृष्ट होता है, कदाचित् नहीं। यदि स्पृष्ट होता है तो नियमतः अनन्त प्रदेशों से स्पृष्ट होता है।
[५] एवं पोग्गलऽस्थिकायपएसेहि वि अद्धासमएहि वि।
[३१-५] इसी प्रकार पुद्गलास्तिकाय के प्रदेशों से तथा अद्धाकाल के समयों से स्पृष्ट होने के विषय में जानना चाहिए।
३२. [१] एगे भंते ! जीवऽथिकायपएसे केवतिएहिं धम्मऽत्थि० पुच्छा। जहन्नपए चउहि, उक्कोसपए सत्तहिं। [३२-१ प्र.] भगवन् ! जीवास्तिकाय का एक प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों में स्पृष्ट होता है ?
[३२-१ उ.] गौतम ! वह जघन्य पद में धर्मास्तिकाय के चार प्रदेशों से और उत्कृष्टपद में सात प्रदेशों से स्पृष्ट होता है।
[२] एवं अधम्मऽत्थिकायपएसेहि वि। [३२-२] इसी प्रकार वह अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों से स्पृष्ट होता है।