Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तेरहवां शतक : उद्देशक-४
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परस्पर मिलना बिछुड़ना पुद्गलास्तिकाय का गुण है।
कठिन शब्दार्थ-भासुम्मेस-भाषण तथा उन्मेष-नेत्रव्यापारविशेष । ठाण-निसीयण-तुयट्टण-ठाणस्थित होना, कायोत्सर्ग करना, निसोयण-बैठना, तुयट्टण—शयन करना, करवट बदलना। एगत्तीभावकरणताएकत्रीभावकरण—एकाग्र करना। भायणभूए-भाजनभूत-आधारभूत। आणापाणूणं-आन-प्राणश्वासोच्छ्वासों का। पंचास्तिकायप्रदेश-अद्धासमयों का परस्पर जघन्योत्कृष्टप्रदेश-स्पर्शनानिरूपण : आठवाँ अस्तिकायस्पर्शनाद्वार
२९. [१] एगे भंते ! धम्मऽस्थिकायपएसे केवतिएहिं धम्मऽस्थिकायपएसेहिं पुढे ? गोयमा ! जहन्नपए तीहिं, उक्कोसपए छहिं।
[२९-१ प्र.] भगवन् ! धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश, कितने धर्मास्तिकाय के प्रदेशों द्वारा स्पृष्ट (छुआ हुआ) होता है ?
.[२९-१ उ.] गौतम ! वह जघन्य पद में तीन प्रदेशों से और उत्कृष्ट पद में छह प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। [२] केवतिएहिं अधम्मऽत्थिकायपएसेहिं पुढे ? जहन्नपए चउहि, उक्कोसपदे सत्तहिं। [२९-२ प्र.] (भगवन् ! धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश), अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ?
[२९-२ उ.] (गौतम ! वह) जघन्य पद में चार प्रदेशों से और उत्कृष्ट पद में सात अधर्मास्तिकाय प्रदेशों से स्पृष्ट होता है।
[३] केवतिएहिं आगासऽत्थिकायपदेसेहिं पुढे ? सत्तहिं। [२९-३ प्र.] वह (धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश) आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? [२९-३ उ.] (गौतम ! वह) सात(आकाश-)प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। [४] केवतिएहिं जीवऽत्थिकायपदेसेहिं पुढे ?
१. (क) तत्त्वार्थसूत्र (पं. सुखलालजी) अ. ५, सू. १ से १० तक
(ख) भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. ५, पृ. २१९२-९६
(ग) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६०८ २. वही, अ. वृत्ति, पत्र ६०८